आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २६ नवंबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
वाजिदअली शाह की ठुमरी है - बाबुल मोरा, नैहर छूटो ही जाय' और विदाई के समय शायद हर बेटी भी यही कहती है. अपना मान-अभिमान, अपनी हस्ती, अपनी मस्ती, अपने एहसास, अपने जज़्बात, इन सबको छोड़कर वो फ़र्ज़ की अंधेरी गुफ़ा में ढकेल दे जाती है.
4 टिप्पणियां:
स्त्री की सहनशीलता की टीस को व्यक्त करती सुंदर क्षणिका .
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २६ नवंबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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गहरी बात ...
इस डर में जीना भी खुद ही छोड़ना होगा ...
वाजिदअली शाह की ठुमरी है -
बाबुल मोरा, नैहर छूटो ही जाय'
और विदाई के समय शायद हर बेटी भी यही कहती है. अपना मान-अभिमान, अपनी हस्ती, अपनी मस्ती, अपने एहसास, अपने जज़्बात, इन सबको छोड़कर वो फ़र्ज़ की अंधेरी गुफ़ा में ढकेल दे जाती है.
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