स्वीकार
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मैं अपने आप से मिलना नहीं चाहती
जानती हूँ ख़ुद से मिलूँगी तो
जी नहीं पाऊँगी
जीवित रहने के लिए
मैंने उन सभी अनुबंधों को स्वीकार किया है
जिसे मेरा मन नहीं स्वीकारता है
विकल्प दो ही थे मेरे पास-
जीवित रहूँ या ख़ुद से मिलूँ।
- जेन्नी शबनम (19. 3. 2019)
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4 टिप्पणियां:
बहुत लाजवाब , सारगर्भित रचना...।
होली पर ढेरों शुभकामनाएं!
बढिया क्षणिका..
बेहतरीन एहसास
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