जीवन-पथ (चोका)
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जीवन-पथ
उबड़-खाबड़-से
टेढ़े-मेढ़े-से
गिरते-पड़ते भी
होता चलना,
पथ कँटीले सही
पथरीले भी
पाँव ज़ख़्मी हो जाएँ
लाखों बाधाएँ
अकेले हों मगर
होता चलना,
नहीं कोई अपना
न कोई साथी
फैला घना अन्धेरा
डर-डर के
कदम हैं बढ़ते
गिर जो पड़े
खुद ही उठकर
होता चलना,
खुद पोंछना आँसू
जग की रीत
समझ में तो आती;
पर रुलाती
दर्द होता सहना
चलना ही पड़ता !
- जेन्नी शबनम (8. 6. 2019)
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2 टिप्पणियां:
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06 -07-2019) को '' साक्षरता का अपना ही एक उद्देश्य है " (चर्चा अंक- 3388) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत सुंदर और सच्ची बात कही आपने!!
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