बारहमासी
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रग-रग में दौड़ा मौसम
रहा न मन अनाड़ी
मौसम का है खेल सब
हम ठहरे इसके खिलाड़ी।
आँखों में भदवा लगा
जब आया नाचते सावन
जीवन में उगा जेठ
जब सूखा मन का आँगन।
आया फगुआ झूम-झूमके
तब मन हो गया बैरागी
मुँह चिढ़ाते कार्तिक आया
पर जली न दीया-बाती।
समझो बातें ऋतुओं की
कहे पछेया बासन्ती
मन चाहे बेरंग हो, पर
रूप धरो रंग नारंगी।
पतझड़ हो या हरियाली
हँसी हो बारहमासी
मन में चाहे अमावस हो
जोगो सदा पूरनमासी।
-जेन्नी शबनम (9.9.2020)
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12 टिप्पणियां:
सुन्दर सृजन
पतझड़ हो या हरियाली
हँसी हो बारहमासी
मन में चाहे अमावस हो
जोगो सदा पूरनमासी।
बहुत खूब,सुंदर सृजन,सादर नमस्कार शबनम जी
सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 11-09-2020) को "मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ " (चर्चा अंक-3821) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत ही सुंदर रचना संसार है आपका।
यह बारहमासी अदभुत है।
बधाई व शुभकामनायें
वाह ... हर मौसम का अपना भाव होता है ... कुछ कहता है अज्नाजे ही मौसम जो जीवन में रचित रहता है ...
सुन्दर और सारगर्भित रचना।
बहुत सुंदर रचना आदरणीया
सुंदर प्रस्तुति
Very nice
वाह...अमावस से पूरनमासी तक की कहानी बहुत खूब लिखी शबनम जी
हर मौसम और जीवन का अद्भुत योग....पूर्णमासी से अमावस तक हंसी हो बारहमासी..
बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह!!!
बेहतरीन
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