सोमवार, 21 सितंबर 2020

686. अल्ज़ाइमर

अल्ज़ाइमर 

*** 

सड़क पर से गुज़रती हुई   
जाने मैं किधर खो गई    
घर, रास्ता, मंज़िल सब अनचीन्हा-सा है  
मैं बदल गई हूँ या दुनिया बदल गई है।
   
धीरे-धीरे सब विस्मृत हो रहा है   
मस्तिष्क साथ छोड़ रहा है   
या मैं मस्तिष्क की उँगली छोड़ रही हूँ। 
  
कुछ भूल जाती हूँ, तो अपनों की झिड़की सुनती हूँ   
सब कहते, मैं भूलने का नाटक करती हूँ   
कुछ भूल न जाऊँ, लिख-लिखकर रखती हूँ   
सारे जतन के बाद भी अक्सर भूल जाती हूँ   
अपने भूलने से मैं सहमी रहती हूँ   
अपनी पहचान खोने के डर से डरी रहती हूँ।
   
क्यों सब कुछ भूलती हूँ, मैं पागल तो नहीं हो रही?   
मुझे कोई रोग है क्या, कोई बताता क्यों नहीं?   
यों ही कभी एक रोज़   
गिनती के सुख और दुःखों के अम्बार भूल जाऊँगी   
ख़ुद को भूल जाऊँगी, बेख़याली में गुम हो जाऊँगी   
याद करने की जद्दोजहद में हर रोज़ तड़पती रहूँगी   
फिर से जीने को हर रोज़ ज़रा-ज़रा मरती रहूँगी
मुमकिन है, मेरा जिस्म ज़िन्दा तो रहे   
पर कोई एहसास, मुझमें ज़िन्दा न बचे। 
   
मेरी ज़िन्दगी अब अपनों पर बोझ बन रही है   
मेरी आवाज़ धीरे-धीरे ख़ामोश हो रही है   
मैं हर रोज़ ज़रा-ज़रा गुम हो रही हूँ   
हर रोज़ ज़रा-ज़रा कम हो रही हूँ।   
मैं सब भूल रही हूँ   
मैं धीरे-धीरे मर रही हूँ।   

-जेन्नी शबनम (21.9.2020)
(विश्व अल्ज़ाइमर दिवस) 
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9 टिप्‍पणियां:

Onkar ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-09-2020) को   "निर्दोष से प्रसून भी, डरे हुए हैं आज"   (चर्चा अंक-3833)   पर भी होगी। 
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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Pammi singh'tripti' ने कहा…


आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 23 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

anita _sudhir ने कहा…

मार्मिक चित्रण

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

अल्ज़ाइमर जैसे गंभीर विषय पर आपने जिस गंभीरता एवं सहजता से रचना लिखी है उसके लिए आपको साधुवाद जेन्नी शबनम जी !!!

Dr Varsha Singh ने कहा…

बहुत मार्मिक रचना जेन्नी शबनम जी 🙏💐🙏

Kamini Sinha ने कहा…

"अल्ज़ाइमर" एक ऐसा रोग जो बिना दर्द दिया ही जीते जी मार डालता है. एक बेहद दुखद रोग पर गंभीर चिंतन,सादर नमन आपको

Marmagya - know the inner self ने कहा…

आ जेन्नी शबनम जी, नमस्ते👏! अल्जाइमर एक मानसिक विस्मृति का रोग है। इसमें रोगी की मनोवृत्तियों को आपने बहुत सुंदर ढंग से चित्रित किया है। आपकी पंक्तियाँ:
फिर से जीने को, हर रोज़ ज़रा-ज़रा मरती रहूँगी..बहुत अच्छी हैं। साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ

Sudha Devrani ने कहा…

अल्जाइमर दिमाग की कोशकाओं का मरना...याददाश्त कम होना...या फिर जैसे कहा गिनती के सुख और दुखों का अंबार...हर वक्त दुखी मन भी विस्मृत होने लगता है कुछ समय के लिए अल्जाइमर जैसी स्थिति।
दुखों और बुरी घटनाओं को भूलना ही बेहतर है
ऐसी मनस्थिति पर बहुत ही लाजवाब सृजन किया है आपने...साधुवाद🙏🙏🙏🙏