रविवार, 8 नवंबर 2020

694. हम (11 हाइकु) प्रवासी मन - 119, 120

हम 


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1. 
चाहता मन-   
काश पंख जो होते   
उड़ते हम।    

2. 
जल के स्रोत   
कण-कण से फूटे   
प्यासे हैं हम।    

3. 
पेट मे आग   
पर जलता मन,   
चकित हम।    

4. 
हमसे जन्मी   
मंदिर की प्रतिमा,   
हम ही बुरे।    

5. 
बहता रहा   
आँसुओं का दरिया   
हम ही डूबे।  

6. 
कोई  सगा   
ये कैसी है दुनिया?   
ठगाए हम।     

7. 
हमने ही दी   
सबूत  गवाही,   
इतिहास मैं।  

8.
यायावर थी, 
शब्दों में अब मिली,
पनाह मुझे।      

9. 
मिला है शाप,   
अभिशापित हम   
किया  पाप।    

10. 
अकेले चले   
सूरज-से जलते   
जन्मों से हम।    

11. 
अड़े ही रहे   
आँधियों में अडिग   
हम हैं दूब 

- जेन्नी शबनम (7. 11. 2020)
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10 टिप्‍पणियां:

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुंदर।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बढ़िया हाइकु।

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (१०-११-२०२०) को "आज नया एक गीत लिखूं"(चर्चा अंक- 3881) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा

Onkar ने कहा…

बहुत सुंदर

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बहुत बढ़िया।

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब !

अनीता सैनी ने कहा…

वाह !बेहतरीन दी 👌

चाहता मन
काश पंख जो होते
उड़ते हम! ..वाह !

Satish Rohatgi ने कहा…

सुंदर रचना
बिलकुल नई विधा
बहुत सुंदर

Ankit ने कहा…

bhut hi badiya post likhi hai aapne. Ankit Badigar Ki Traf se Dhanyvad.