मंगलवार, 10 नवंबर 2020

695. जिया करो (तुकांत)

जिया करो 

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सपनों के गाँव में, तुम रहा करो   
किस्त-किस्त में न, तुम जिया करो।     

संभावनाओं भरा, ये शहर है   
ज़रा आँखें खुली, तुम रखा करो।  

कब कौन किस वेष में, छल करे   
ज़रा सोच के ही, तुम मिला करो।     

हैं ढेरों झमेले, यहाँ पे पसरे   
ज़रा सँभल के ही, तुम चला करो।     

आजकल हर रिश्ते हैं, टूटे बिखरे   
ज़रा मिलजुल के ही, तुम रहा करो।     

तूफ़ाँ आके, गुज़र न जाए जबतक   
ज़रा झुका के सिर, तुम रहा करो।     

मतलबपरस्ती से, क्यों है घबराना   
ज़रा दुनियादारी, तुम समझा करो।     

गुनहगारों की, जमात है यहाँ   
ज़रा देखकर ही, तुम मिला करो।     

नस-नस में भरा, नफ़रतों का खून   
ज़रा-सा आशिक़ी, तुम किया करो।    

अँधेरों की महफ़िल, सजी है यहाँ   
ज़रा रोशनी बन, तुम बिखरा करो।     

रात की चादर पसरी है, हर तरफ़   
ज़रा दीया बनके, तुम जला करो।     

कौन क्या सोचता है, न सोचो 'शब'   
जीभरकर जीवन अब, तुम जिया करो।    

- जेन्नी शबनम (10. 11. 2020) 
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10 टिप्‍पणियां:

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

कौन क्या सोचता है न सोचो अब ?..सटीक अभिव्यक्ति ..सुंदर पंक्तियाँ..

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

वाह।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12.11.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क

Onkar ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

MANOJ KAYAL ने कहा…

वाह !बहुत सुंदर !

अनीता सैनी ने कहा…

कब कौन किस वेष में, छल करे
ज़रा सोच के ही, तुम मिला करो! ..वाह !बेहतरीन सृजन दी।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

बेहतरीन

Gajendra Bhatt "हृदयेश" ने कहा…

'कब कौन किस वेष में, छल करे
ज़रा सोच के ही, तुम मिला करो!' -बहुत खूबसूरत!

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल ने कहा…

कौन क्या सोचता है, न सोचो 'शब'
जी भरकर जीवन अब, तुम जिया करो!

ख़ूबसूरत ग़ज़ल - -