रविवार, 20 जून 2021

728. ओ पापा!

ओ पापा! 

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ओ पापा!   
तुम गए   
साथ ले गए   
मेरा आत्मबल   
और छोड़ गए मेरे लिए   
कँटीले-पथरीले रास्ते   
जिसपर चलकर   
मेरा पाँव ही नहीं मन भी   
छिलता रहा।   
तुम्हारे बिना   
जीवन की राहें बहुत कठिन रहीं   
गिर-गिरकर ही सँभलना सीखा   
कुछ पाया बहुत खोया   
जीवन निरर्थक चलता रहा।   
तुम्हारी यादें   
और चिन्तन-धारा को   
मन में संचितकर   
अब भरना है स्वयं में आत्मविश्वास   
और उतरना है   
जीवन-संग्राम में।   
भले अब   
जीवन के अवसान पर हूँ   
पर जब तक साँस तब तक आस।   

- जेन्नी शबनम (20. 6. 2021) 
(पितृ दिवस)
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7 टिप्‍पणियां:

How do we know ने कहा…

Bilkul sach hai! Ekdum!

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

पिता को समर्पित सुंदर भावों की दीपांजलि। सादर नमन।

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-0६-२०२१) को 'आख़री पहर की बरसात'(चर्चा अंक- ४१०७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

Harash Mahajan ने कहा…

वाह बहुत खूब जेन्नी जी । बहुत लिखे जाने वाला सब्जेक्ट । बहुत ही उम्दा बधाई !!

सादर

Sudha Devrani ने कहा…

पिता के बिना जीवन आसान नहीं होता।
लोगों के लिए जो राहें सुगम भी हो जिनके पिता नहीं तो जैसे राहों के काँटे उसी के पैर को छलनी करने के लिए उग आते हैं...। पर धीरे उन्हीं काँटों पर चलने की आदत बन जाती है...।
बहुत ही हृदयस्पर्शी मार्मिक सृजन।

Preeti Mishra ने कहा…

ह्रदय स्पर्शी रचना

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

भावपूर्ण ण