रविवार, 25 अगस्त 2024

779. तुम (10 क्षणिका)

तुम (10 क्षणिका)

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1. तुम 

मन में उमंग हो
साथ अगर तुम हो
खिल जाती है मुसकान
नाचता-गाता है आसमान
और कैमरे में उतरता है 
हमारा बचपन।


2. यारी

आप कहें, कभी तुम कहें 
कभी जी, कभी जी हुज़ूर 
ऐसी ग़ज़ब की यारी अपनी 
राधा-कृष्ण-सी है मशहूर।


3. हथेली

रात से छिटककर
मंद-मंद मुसकाती भोर  
उतरकर मेरी हथेली पर आ बैठी
यूँ मानो, हो तुम्हारी हथेली।


4. शाम

तुम थे हम थे 
और मज़ेदार शाम थी
चाय की दो प्याली 
और ठिठुरती शाम थी
बातें अपनी, कुछ ज़माने की
और खिलखिलाती शाम थी
फिर मिलेंगे कहकर चल दी
वह गुज़रती शाम थी।


5. आ जाओ 

उफ! ये घने अँधेरे
डराते हैं बनकर लुटेरे
सूरज बनकर न सही 
एक जुगनू-से सही 
तुम आ जाओ 
बस आ जाओ। 


6. तुम से आप होना    

तुम से आप होना   
जैसे बद से बदतर होना   
सम्बन्ध मन से न हो   
तो यही होगा न!

7.
6. 
तुम से आप होना    

तुम से आप होना   
जैसे बद से बदतर होना   
सम्बन्ध मन से न हो   
तो यही होता है। 
   

7. अपनाया   

अंतर्कलह से जन्मी कविताएँ   
बौखलाई हैं पलायन को   
जाने कहाँ जाकर मिले पनाह   
कौन समझे उसकी पीड़ा को?   
पर अब ख़ुश हूँ उसके लिए   
तुमने समझकर अपनाया उसे। 


8. बदलाव   

मौसम का बदलना   
नियत समय पर होता है   
पर मन का मौसम   
क्षणभर में बदलता है   
यह बदलाव   
तुम क्यों नहीं समझते?


9. महोगनी का पेड़   

महोगनी का पेड़ हूँ   
टिकाऊ और सदाबहार   
पर मन तो स्त्री का ही है   
जिसे अपनी क़ीमत नहीं मालूम   
सज गई हूँ आलीशान महल में 
जाने किस-किस रूप में   
अब जान गई हूँ अपनी क़ीमत    
पर तुम अब भी नहीं जानते। 


10. फ़ासला 

उम्र का फ़ासला मैंने न बनाया
मन का फ़ासला तुमने न मिटाया
आओ एक कोशिश करते हैं
एक उम्र हम चलते हैं
एक क़दम तुम चलो
शायद कभी कहीं 
किसी छोर पर
फ़ासला मिट जाए। 

- जेन्नी शबनम (11. 9. 2021)
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1 टिप्पणी:

Onkar ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर