रविवार, 16 नवंबर 2025

795. जश्न जारी है

जश्न जारी है

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तिनके के लिए भी राह न बची
उम्मीद के दरवाज़े बंद हो गए 
खिड़की ने अपने पल्ले ठेलकर
निश्चित किया कि प्रवेश निषिद्ध  रहे।

दरवाज़े व खिड़की की झिरी से
ठण्डी-स्वच्छ हवा आती है
यहाँ की ऊबन से घबराकर  
थकी-उदास लौट जाती है।

उम्मीद की राहें बंद हुईं
पर फ़रियाद दिल की मिटी नहीं
साँसों की गिनती घटती रही
पर ख़्वाहिशें कभी मिटी नहीं।

प्रारब्ध अटल है चुकाना ही होगा
नियम तय है चलना ही होगा
समझना-समझाना सब फ़िज़ूल
हर कर्म यहाँ भुगतना ही होगा।

जीवन और साँसों का बोझ भारी है
उम्मीद हारी है पर जीवन जारी है
जाने जीने की ये कैसी लाचारी है
साँसें घटीं पर दुःख का जश्न जारी है।

बंद दरवाज़े व खिड़की के पीछे
आह की नदी एक बहती है
जब भी मन हो आकर डूब जाना
मुझसे बार-बार यह कहती है।

बंद दरवाज़े व खिड़की के पीछे
मेरी प्यासी रूह भटकती है 
उम्मीद हारी है अब जीवन की बारी है  
आह की नदी से हुई अब यारी है।

-जेन्नी शबनम (16.11.2025)
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