सोई नहीं मर गई है रात
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भटककर बहुत, थक गई है रात
आगोश में अपने ही, सोई है रात।
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भटककर बहुत, थक गई है रात
आगोश में अपने ही, सोई है रात।
किसी ने थपकी दे, सुलाया कभी
वह नींद कहीं, छोड़ आई है रात।
कोई जागा था, तमाम रात कभी
रह गई तन्हाई, और रोई है रात।
चाह थी, वस्ल की एक रात मिले
हर रात जागकर, बिताई है रात।
किसी की नज़्म बनी, रात मगर
अधूरी नज़्म ही, बन पाई है रात।
आस टूटी, अब कैसे दिखे उजाला
मान लो, अपना नहीं कोई है रात।
जागती रात, एक अँधियारा है बस
जागकर हर सपना, खोई है रात।
उदासियों में भी, चहकती थी 'शब'
ओह! वो सोई नहीं, मर गई है रात।
- जेन्नी शबनम (10. 5. 2010)
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soi nahin mar gai hai raat
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bhatakkar bahut, thak gai hai raat
aagosh mein apne hi, soi hai raat.
kisi ne thapki de, sulaaya kabhi
wah nind kahin, chhod aai hai raat.
koi jaaga tha, tamaam raat kabhi
rah gai tanhaai, aur roi hai raat.
chaah thi, wasl ki ek raat mile
har raat jaagkar, bitai hai raat.
kisi ki nazm bani, raat magar
adhuri nazm hi, ban pai hai raat.
aas tooti, ab kaise dikhe ujaala
maan lo, apna nahin koi hai raat.
jaagati raat, ek andhiyaara hai bas
jaagkar har sapna, khoi hai raat.
udaasiyon mein bhi, chahakti thi 'shab'
ohh! wo soi nahin, mar gai hai raat.
- Jenny Shabnam (10. 5. 2010)
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8 टिप्पणियां:
कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
जीवन के विविध आयामों से गुजरते एहसासों और परिणामों को बहुत अच्छे से प्रस्तुत किया...
बढ़िया
बहुत बढ़िया प्रस्तुती ......
Bahuthi sundar!
प्रशंसनीय ।
कुछ तो है इन रातों में ...........
सुंदर प्रस्तुति
उदासियों में भी चहकती थी ''शब''
ओह...वो सोई नहीं मर गई है रात !
bahut khub
आपकी रचना में शब्द शब्द प्राण होते हैं जिन्हें पढ़कर दिल को असीम सुख की अनुभूति होती है |
शब्दों में क्या कहूं इन शब्दों को कहाँ जान रखा है |
आपकी रचनाओं को पढ़कर बस मौन मान रखा है ||
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