रविवार, 26 सितंबर 2010

177. दम्भ हर बार टूटा / dambh har baar toota (क्षणिका)

दम्भ हर बार टूटा

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रिश्ते बँध नहीं सकते, जैसे वक़्त नहीं बँधता
पर रिश्ते रुक सकते हैं, वक़्त नहीं रुकता
फिर भी कुछ तो है समानता
न दिखें पर दोनों साथ हैं चलते 
नहीं मालूम दूरी बढ़ी, या फ़ासला न मिटा
पर कुछ तो है, साथ होने का दम्भ हर बार टूटा 

- जेन्नी शबनम (8. 9. 2010)
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dambh har baar toota

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rishte bandh nahin sakte, jaise waqt nahin bandhta
par rishte ruk sakte hain, waqt nahin rukta
fir bhi kuchh to hai samaanta
na dikhen par donon saath hain chalte
nahin maloom doori badhi, yaa faasla na mita
par kuchh to hai, saath hone ka dambh har baar toota.

- Jenny Shabnam (8. 9. 2010)
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7 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

दम्भ अगर है तो टूट जाये तो अच्छा

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27/9/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

नयी सोच पढ़ने को मिली ऐसा तो कभी सोचा नहीं था. सुंदर अभिव्यक्ति.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

kai baar waqt hi ruka hota hai....

मेरे भाव ने कहा…

रिश्ते बँध नहीं सकते
जैसे वक़्त नहीं बंधता,
पर रिश्ते रुक सकते हैं
वक़्त नहीं रुकता !
par waqt ki lahron par sawar hokar rishte khoobsoorat ho sakte hain.

सहज साहित्य ने कहा…

रिश्ते बँध नहीं सकते
जैसे वक़्त नहीं बंधता,
पर रिश्ते रुक सकते हैं
वक़्त नहीं रुकता !
-ये पंक्तियाँ गागर में सागर हैं शबनम जी ।

shabdnirantar ने कहा…

rishton ki burai hai ki we hamen janam ke saath mil jaate hain aur chaho na chaho nibhana hai.yehi hain bandhe ,ruke,thahre,rishte...jo ham banate hain benaam rishte we tamam umar shukun dete hain jaise bloggia rishte