संकल्प
*******
चलते-चलते
उस पुलिया पर चली गई
जहाँ से कई बार गुज़र चुकी हूँ
और अभी-अभी पटरी पर से
एक रेलगाड़ी गुज़री है।
ठण्ड की ठिठुरती दोपहरी
कँपकँपी इतनी कि जिस्म ही नहीं
मन भी अलसाया-सा है
तुम्हारा हाथ अपने हाथ में लिए
मूँदी आँखों से मैं तुम्हें देख रही हूँ।
तुमसे कहती हूँ -
मीत!
साथ-साथ चलोगे न
हर झंझावत में पास रहोगे न
जब भी थक जाऊँ, मुझे थाम लोगे न
एक संकल्प तुम भी लो आज, मैं भी लेती हूँ
कोई सवाल न तुम करना
कोई ज़िद मैं भी न करुँगी
तमाम उम्र यूँ ही
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चलते-चलते
उस पुलिया पर चली गई
जहाँ से कई बार गुज़र चुकी हूँ
और अभी-अभी पटरी पर से
एक रेलगाड़ी गुज़री है।
ठण्ड की ठिठुरती दोपहरी
कँपकँपी इतनी कि जिस्म ही नहीं
मन भी अलसाया-सा है
तुम्हारा हाथ अपने हाथ में लिए
मूँदी आँखों से मैं तुम्हें देख रही हूँ।
तुमसे कहती हूँ -
मीत!
साथ-साथ चलोगे न
हर झंझावत में पास रहोगे न
जब भी थक जाऊँ, मुझे थाम लोगे न
एक संकल्प तुम भी लो आज, मैं भी लेती हूँ
कोई सवाल न तुम करना
कोई ज़िद मैं भी न करुँगी
तमाम उम्र यूँ ही
साथ-साथ चलेंगे, साथ-साथ जीएँगे।
तुम्हारी हथेली पर अपनी हथेली रख
करती रही मैं, तुम्हारे संकल्प-शब्द का इंतज़ार
अचानक एक रेलगाड़ी धड़धड़ाती हुई गुज़र गई
मैं तुम्हारी हथेली ज़ोर से पकड़ ली
तुम्हारे शब्द विलीन हो गए
मैं सुन न पायी या तुमने ही कोई संकल्प न लिया।
अचानक तुमने झिंझोड़ा मुझे
क्या कर रही हो?
यूँ रेल की पटरी के पास
कुछ हो जाता तो?
मैं हतप्रभ!
चारो तरफ़ सन्नाटा
सोचने लगी, किसे थामे थी
किससे संकल्प ले रही थी?
रेलगाड़ी की आवाज़ अब दूर जा चुकी है
मैं अकेली पुलिया की रेलिंग थामे
पता नहीं ज़िन्दगी जीने या खोने
जाने किस संकल्प की आस
कोई नहीं आस पास
न तुम, न मैं!
- जेन्नी शबनम (11. 1. 2011)
________________________
तुम्हारी हथेली पर अपनी हथेली रख
करती रही मैं, तुम्हारे संकल्प-शब्द का इंतज़ार
अचानक एक रेलगाड़ी धड़धड़ाती हुई गुज़र गई
मैं तुम्हारी हथेली ज़ोर से पकड़ ली
तुम्हारे शब्द विलीन हो गए
मैं सुन न पायी या तुमने ही कोई संकल्प न लिया।
अचानक तुमने झिंझोड़ा मुझे
क्या कर रही हो?
यूँ रेल की पटरी के पास
कुछ हो जाता तो?
मैं हतप्रभ!
चारो तरफ़ सन्नाटा
सोचने लगी, किसे थामे थी
किससे संकल्प ले रही थी?
रेलगाड़ी की आवाज़ अब दूर जा चुकी है
मैं अकेली पुलिया की रेलिंग थामे
पता नहीं ज़िन्दगी जीने या खोने
जाने किस संकल्प की आस
कोई नहीं आस पास
न तुम, न मैं!
- जेन्नी शबनम (11. 1. 2011)
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11 टिप्पणियां:
तुम्हारी हथेली पर
अपनी हथेली रखे
करती रही मैं
तुम्हारे संकल्प-शब्द का इंतज़ार,
अचानक एक रेल
धड़धड़ाती हुई गुज़र गई,
मैं तुम्हारी हथेली
जोर से पकड़ ली,
तुम्हारे शब्द विलीन हो गए
मैं सुन न पायी
या तुमने हीं
कोई संकल्प न लिया !
ghadi ki tik tik aur ek sannata aur jane kya kya gunta mann!
ekidam alag,behad achchi.
एक पवित्र संकल्प कि इक्छा..
"तुम्हारी हथेली पर
अपनी हथेली रखे
करती रही मैं
तुम्हारे संकल्प-शब्द का इंतज़ार,
अचानक एक रेल
धड़धड़ाती हुई गुज़र गई,
मैं तुम्हारी हथेली
जोर से पकड़ ली,
तुम्हारे शब्द विलीन हो गए
मैं सुन न पायी
या तुमने हीं
कोई संकल्प न लिया!"
शायद भविष्य में सुध आये
इंतज़ार और अभी...
रेल की आवाज़ भी
अब दूर जा चुकी,
मैं अकेली पुलिया की रेलिंग थामे ...
पता नहीं ज़िन्दगी जीने या खोने...
जाने किस संकल्प की आस
कोई नहीं आस पास
न तुम
न मैं...
--
सुन्दर शब्दचित्र!
वाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर!
आपको मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
aapki rachna pahli baar padhi..par sabhi rachnayen dil men ajeeb si kask paisa karti han...bahut2 badhai..
एक संकल्प तुम भी लो आज
मैं भी लेती हूँ
कोई सवाल न तुम करना
कोई ज़िद मैं भी न करुँगी,
तमाम उम्र यूँ हीं
साथ साथ चलेंगे
साथ साथ जियेंगे !
-शबनम जी इन पंक्तियों में जो उदात्तता है वह तो वैदिक ॠचाओं में ही सम्भव है ।दिल को छूनेवाली ये पंक्तियाँ ऐसी छाप छोड़ती हैं कि उनसे उबरना मुश्किल है। आपकी लेखनी को हार्दिक प्रणाम
मैं अकेली पुलिया की रेलिंग थामे ...
पता नहीं ज़िन्दगी जीने या खोने...
जाने किस संकल्प की आस
कोई नहीं आस पास
न तुम
न मैं...
ख्यालों मे आदमी कितना कुछ जी लेता है। कई बार इस संकल्प की आस मे ही ज़िन्दगी बीत जाती है। बहुत भावमय रचना। बधाई आपको।
@rashmi ji
@mridula ji
@punam ji
@roopchandra ji
@sanjay ji
@bhawna ji
@kamboj bhaisahab
@nirmala ji
aap sabhi ka tahedil se shukriya. meri rachna par aane aur pasand karne keliye.
झकझोर गयी यह कविता,जेन्नी, बहुत अच्छी कविता ।
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