मंगलवार, 18 जनवरी 2011

204. अब मान ही लेना है

अब मान ही लेना है 

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तुम बहुत आगे निकल गए   
मैं बहुत पीछे छूट गई   
कैसे दिखाऊँ तुम्हें   
मेरे पाँव के छाले,   
तुम्हारे पीछे भागते-भागते   
काँटे चुभते रहे   
फिर भी दौड़ती रही   
शायद पहुँच जाऊँ तुम तक,   
पर अब लगता है   
ये सफ़र का फ़ासला नहीं   
जो तुम कभी थम जाओ   
और मैं भागती हुई   
पहुँच जाऊँ तुम तक,   
शायद ये वक़्त का फ़ासला है   
या तक़दीर का फ़ैसला   
हौसला कम तो न था   
पर अब मान ही लेना है!

- जेन्नी शबनम (14. 1. 2011)
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17 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

संजय भास्‍कर ने कहा…

ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

nilesh mathur ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति!

Sankalp ने कहा…

सपने उनके सच होते हैं जिनके सपनों में जान होती है! सिर्फ पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उडान होती है !

हौसला रखिये... सब अच्छा होगा :-)

बेनामी ने कहा…

शायद ये उम्र का फासला है
या फिर तकदीर का फ़ैसला,
--
फासले और फैसले की सुन्दर परिभाषा के साथ बेहतरीन रचना देने के लिए आभार!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

tum itni door ho ki ye chhale bhi sookh chale
koi hai bhi nahin n dekhne ko...
dil ko kuredati rachna

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अब मान ही लेना है .....जो है उसे स्वीकार करना ही होता है ..अच्छी अभिव्यक्ति .

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव समन्वय्।

***Punam*** ने कहा…

"तुम्हारे पीछे
भागते भागते
कांटे चुभते रहे
फिर भी दौड़ती रही
कि तुम तक पहुँच जाऊं शायद...''

बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति....

किसी के साथ की चाहत..

किसी के पास होने का एहसास !!

mridula pradhan ने कहा…

bahut bhawpurn.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

khubsurat abhivyakti......

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

khubsurat abhivyakti......

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

@sanjay ji
@nilesh ji
@sankalp ji
@roopchand ji
@rashmi ji
@sangeeta ji
@vandana ji
@poonam ji
@mridula ji
@mukesh ji

aap sabhi ko meri rachna pasand aai, mann se aap sabhi ka aabhar. yun hin aap sabhi se protsaahan kee apeksha rahegi. sadhanyawaad...jenny

सहज साहित्य ने कहा…

शायद ये उम्र का फासला है
या फिर तकदीर का फ़ैसला,
आपका असमंजस सही है , फिर भी मैं कहना चाहूँगा कि तक़दीर अन्तत: बाजी मार ले जाती है और हमारे सारे सद्प्रयासों को थके हुए बूढ़े की तरह मज़बूर बना देती है ।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

kamboj bhaisahab,
yahi to zindgi hai, agar har baazi hum jeet jaayen to jine ka maza hin khatm ho jaaye. thodi haar thodi niraasha hamein jitne aur jine kee prerna deti hai aur aashawaadi banati hai. meri rachna ke marm ko aapne mehsoos kiya tahedil se aabhar.

सहज साहित्य ने कहा…

हाँ बहन ! आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ । मैंने बरसों पहले इस प्रकार लिखा था- थोडी़ - सी छाँव
थोडी़- सी धूप।
थोडी़ - सा प्यार
थोडी़- सा रूप।
जीवन के लिए जरूरी है...
थोडा़ तकरार
थोड़ी मनुहार।
थोड़े -से शूल
अँजुरीभर फूल।
जीवन के लिए जरूरी है...
दो चार आँसू
थोड़ी मुस्कान।
थोड़ी - सा दर्द
थोड़े------- से गान।
जीवन के लिए जरूरी है...
उजली- सी भोर
सतरंगी शाम।
हाथों को काम
तन को आराम।
जीवन के लिए जरूरी है...
आँगन के पार
खुला हो द्वार।
अनाम पदचाप
तनिक इन्तजार।
जीवन के लिए जरूरी है...
निन्दा की धूल
उड़ा रहे मीत।
कभी ­ कभी हार
कभी ­ कभी जीत।

-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Madhu Rani ने कहा…

दिल की गहराई से निकली आवाज, हमारे दिल तक भी पहुंच गयी।