पाप तो नहीं
*******
जीवन के मायने हैं -
जीवित होना या जीवित रहना।
क्या सिर्फ़
साँसें ही तक़ाज़ा है?
फिर क्यों दर्द से व्याकुल होता है मन
क्यों कराह उठती है आत्मा
पूर्णता के बाद भी
क्यों अधूरा-सा रहता है मन?
इच्छाएँ कभी मरती नहीं
भले कम पड़ जाए ज़िन्दगी
पल-पल ख्वाहिशें बढ़ती हैं
तय है कि सब नष्ट होना है
या फिर छिन जाना है।
सुकून के कुछ पल
क्यों कभी-कभी
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जीवन के मायने हैं -
जीवित होना या जीवित रहना।
क्या सिर्फ़
साँसें ही तक़ाज़ा है?
फिर क्यों दर्द से व्याकुल होता है मन
क्यों कराह उठती है आत्मा
पूर्णता के बाद भी
क्यों अधूरा-सा रहता है मन?
इच्छाएँ कभी मरती नहीं
भले कम पड़ जाए ज़िन्दगी
पल-पल ख्वाहिशें बढ़ती हैं
तय है कि सब नष्ट होना है
या फिर छिन जाना है।
सुकून के कुछ पल
क्यों कभी-कभी
पूरी ज़िन्दगी से लगते हैं?
यथार्थ से परे
न सोचना है, न रुकना है
ज़िन्दगी जीना या चाहना
पाप तो नहीं?
- जेन्नी शबनम (23. 1. 2011)
__________________________
यथार्थ से परे
न सोचना है, न रुकना है
ज़िन्दगी जीना या चाहना
पाप तो नहीं?
- जेन्नी शबनम (23. 1. 2011)
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7 टिप्पणियां:
जीवन के मायने
जीवित होना या जीवित रहना,
क्या सिर्फ
सांसें हीं तकाज़ा है?
बहुत बड़ा सवाल है! सुन्दर अभिव्यक्ति!
सुकून के कुछ पल
क्यों कभी कभी
पूरी ज़िन्दगी से लगते हैं?
यथार्थ से परे
न सोचना है
न रुकना है,
ज़िन्दगी जीना या चाहना
पाप तो नहीं?
बहुत सुंदर .....
saans lene ko to jeena nahi kahte yaarab ...
bahut achhi rachna
सुकून के कुछ पल
क्यों कभी कभी
पूरी ज़िन्दगी से लगते हैं?
यथार्थ से परे
न सोचना है
न रुकना है,
ज़िन्दगी जीना या चाहना
पाप तो नहीं? आपकी ये पंक्तियाँ मानव-सत्य को प्रस्तुत करती हैं । आकांक्षाएँ जीवन का ही रूप हैं। जिन्दा रहने के लिए यथार्थ से परे सोचना , चाह रखना ही वास्तव में जीवन का लक्षण है । आपने इसे बेहतर ढ्।म्ग से पेश किया है ।
"पूर्णता के बाद भी
क्यों अधूरा सा रहता है मन,"
जीवन की यही विडंबना है...
कि पूर्ण हो कर भी
हम स्वयं को अपूर्ण समझते हैं..
और सवाल वहीँ का वहीँ ..
जवाब नदारत...
bahut achcha likhi hain.
सुकून के कुछ पल
क्यों कभी कभी
पूरी ज़िन्दगी से लगते हैं?
:-) sunder...!
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