एक स्वप्न की तरह
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बनते-बनते जाने कैसे
मैं कई सवाल बन गई हूँ
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बनते-बनते जाने कैसे
मैं कई सवाल बन गई हूँ
जिनके जवाब
सिर्फ़ तुम्हारे पास हैं
पर तुम बताओगे नहीं
मैं यह भी जानती हूँ,
शिकस्त खाना तुम्हारी आदत नहीं
और मात देना मेरी फ़ितरत नहीं,
फिर भी
जाने क्यों
तुम ख़ामोश होते हो
शायद ख़ुद को रोके रखते हो
कहीं मेरी आवारगी
मेरी यायावरी
तुम्हे डगमगा न दे
या फिर तुम्हारी दिशा बदल न दे,
मेरे हमदर्द!
फ़िक्र न करो
कुछ नहीं बदलेगा
सिर्फ़ तुम्हारे पास हैं
पर तुम बताओगे नहीं
मैं यह भी जानती हूँ,
शिकस्त खाना तुम्हारी आदत नहीं
और मात देना मेरी फ़ितरत नहीं,
फिर भी
जाने क्यों
तुम ख़ामोश होते हो
शायद ख़ुद को रोके रखते हो
कहीं मेरी आवारगी
मेरी यायावरी
तुम्हे डगमगा न दे
या फिर तुम्हारी दिशा बदल न दे,
मेरे हमदर्द!
फ़िक्र न करो
कुछ नहीं बदलेगा
जवाब तुमसे पुछूँगी नहीं
मैं यूँ ही सवाल बनकर
रह जाऊँगी
ख़ुद में गुम
तुमको यूँ ही दूर से देखते हुए
एक स्वप्न की तरह!
- जेन्नी शबनम (11. 2. 2011)
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मैं यूँ ही सवाल बनकर
रह जाऊँगी
ख़ुद में गुम
तुमको यूँ ही दूर से देखते हुए
एक स्वप्न की तरह!
- जेन्नी शबनम (11. 2. 2011)
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10 टिप्पणियां:
शिकस्त खाना
तुम्हारी आदत नहीं
और मात देना
मेरी फितरत नहीं,
फिर भी...bejod
रचना में मनोबावों का सुन्दर चित्रण किया है आपने!
Khoob.
शिकस्त खाना
तुम्हारी आदत नहीं
और मात देना
मेरी फितरत नहीं,
...बहुत खूब ! शब्दों और भावों का बहुत सुन्दर संयोजन..
बेहतरीन
फ़िक्र न करो
कुछ नहीं बदलेगा
मैं यूँ हीं सवाल बन कर
रह जाऊँगी
bahut sunder kavita.
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
ज़िन्दगी की एक हकीकत ये भी है…………सुन्दर रचना।
मैं यूँ हीं सवाल बन कर
रह जाऊँगी
जवाब तुमसे पूछूंगी भी नहीं,
ख़ुद में गुम
तुमको यूँ हीं दूर से देखते हुए
एक स्वप्न की तरह...
bahut khub...:)
lekin aisa kyon??:)
mere ehsaas shabd aapke......kuch rachnaaye aisi hi lagti hai.!!!
hamre zehan main dheron sawaal rahte hain par javaab denewala khud bhi ek sawaal ban jaaye to......?????
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