गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

214. ज़ख़्मी पहर

ज़ख़्मी पहर

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वक़्त का एक ज़ख़्मी पहर
लहू संग ज़ेहन में समाकर
जकड़ लिया है मेरी सोच

कुछ बोलूँ
वो पहर अपने ज़ख़्म से
रंग देता है मेरे हर्फ़

चाहती हूँ
कभी किसी वक़्त कह पाऊँ
कुछ रूमानी
कुछ रूहानी-सी बात

पर नहीं
शायद कभी नहीं
ज़ख़्मी वक़्त से
मुक्ति नहीं

नहीं कह पाऊँगी
ऐसे अल्फ़ाज़
जो किसी को बना दे मेरा
और पा सकूँ
कोई सुखद एहसास!

- जेन्नी शबनम (31. 12. 2010)
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14 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

पर नहीं,
अब शायद
कभी नहीं,
ज़ख़्मी वक़्त से
मुक्ति नहीं !

बेहतरीन .... सभी क्षणिकाएँ कमाल की हैं....

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

dard bhare shabd...!!

बेनामी ने कहा…

ये ठहराव !जख्म कितने भी गहरे हों उन्हें लहू का हिस्सा नहीं बनने देना चाहिए |जख्मों के रंगों से भरे हर्फ़ अस्वीकार क्यूँ किये जायेंगे ?वही तो अभिव्यक्ति का सबसे सुन्दर माध्यम हैं ,वही रोमांस है वही रोमांच है वही दर्द है वही बिछोह है , उस वक्त से मुक्ति पाने की कोशिश की भी नहीं जानी चाहिए अगर जख्म न हो तो शायद अपनी कैफियत का पता न लगे |ये कहना कि वैसे अल्फाज नहीं कहे जा सकेंगे जो किसी को अपना बना दे ,कविता को झिंझोड़ते हुए उसको लहुलुहान करता है और हाँ ,ये अमानवीय भी है | अदभुत

OM KASHYAP ने कहा…

नहीं कह पाउंगी
ऐसे अलफ़ाज़,
जो किसी को
बना दे मेरा,
और पा सकूँ
कोई सुखद एहसास !

बहुत सुन्दर रचना ! आभार

vandana gupta ने कहा…

अरे अरे ऐसा ना कहें ………इतनी नाउम्मीदी ठीक नही…………एक् पहर ही तो है…………ये कब किसी की ज़िन्दगी मे ठहरा है …………इसे तो गुजरना ही होगा…………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

सदा ने कहा…

कुछ बोलूं,
वो पहर
अपने ज़ख़्म से,
रंग देता
मेरे हर्फ़ !
बेहतरीन शब्‍द रचना ।

mridula pradhan ने कहा…

gazab ki khoobsrti hai har pangti men....
पर नहीं,
अब शायद
कभी नहीं,
ज़ख़्मी वक़्त से
मुक्ति नहीं

vijaymaudgill ने कहा…

पर नहीं,
अब शायद
कभी नहीं,
ज़ख़्मी वक़्त से
मुक्ति नहीं !

aah! shabnam ji bahut hi khoobsurat rachna hai

in lines main bebasi ka charm tak pahuchna kamaal hai.
shukriya

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति दिल को छू जाती है

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (26.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

रजनीश तिवारी ने कहा…

कोई एक पल किस तरह छा जाता है पूरे जीवन पर , उसे कब्जे में कर लेता है ! बहुत भावपूर्ण रचना !

Dr Varsha Singh ने कहा…

कुछ बोलूं,
वो पहर
अपने ज़ख़्म से,
रंग देता
मेरे हर्फ़ !


बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।

udaya veer singh ने कहा…

sundar bhav samete aapki rachana,
pratimanon ke sath bhavnaon ka
sammilan, achha lagata hai .badhayiyan .

सहज साहित्य ने कहा…

जेन्नी शबनम जी आपकी कविताओं स्वर बहुत अलग है। लगता है शब्दों के किनारों को गीला करता कोई दरिया बह रहा हो ; और आपकी ये पंक्तियाँ पढ़कर-
नहीं कह पाऊँगी
ऐसे अलफ़ाज़,
जो किसी को
बना दे मेरा,
और पा सकूँ
कोई सुखद एहसास !
मुझे कहना पड़ रहा है कि हम सब आपके अपने ही तो हैं ,आपके मन और विश्वास के बहुत निकट हैं। बहुत आदर और सम्मान के साथ- रामेश्वर काम्बोज