ज़ख़्मी पहर
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वक़्त का एक ज़ख़्मी पहर
लहू संग ज़ेहन में समाकर
जकड़ लिया है मेरी सोच।
कुछ बोलूँ
वो पहर अपने ज़ख़्म से
रंग देता है मेरे हर्फ़।
चाहती हूँ
कभी किसी वक़्त कह पाऊँ
कुछ रूमानी
कुछ रूहानी-सी बात।
पर नहीं
शायद कभी नहीं
ज़ख़्मी वक़्त से
मुक्ति नहीं।
नहीं कह पाऊँगी
ऐसे अल्फ़ाज़
जो किसी को बना दे मेरा
और पा सकूँ
कोई सुखद एहसास!
- जेन्नी शबनम (31. 12. 2010)
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वक़्त का एक ज़ख़्मी पहर
लहू संग ज़ेहन में समाकर
जकड़ लिया है मेरी सोच।
कुछ बोलूँ
वो पहर अपने ज़ख़्म से
रंग देता है मेरे हर्फ़।
चाहती हूँ
कभी किसी वक़्त कह पाऊँ
कुछ रूमानी
कुछ रूहानी-सी बात।
पर नहीं
शायद कभी नहीं
ज़ख़्मी वक़्त से
मुक्ति नहीं।
नहीं कह पाऊँगी
ऐसे अल्फ़ाज़
जो किसी को बना दे मेरा
और पा सकूँ
कोई सुखद एहसास!
- जेन्नी शबनम (31. 12. 2010)
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14 टिप्पणियां:
पर नहीं,
अब शायद
कभी नहीं,
ज़ख़्मी वक़्त से
मुक्ति नहीं !
बेहतरीन .... सभी क्षणिकाएँ कमाल की हैं....
dard bhare shabd...!!
ये ठहराव !जख्म कितने भी गहरे हों उन्हें लहू का हिस्सा नहीं बनने देना चाहिए |जख्मों के रंगों से भरे हर्फ़ अस्वीकार क्यूँ किये जायेंगे ?वही तो अभिव्यक्ति का सबसे सुन्दर माध्यम हैं ,वही रोमांस है वही रोमांच है वही दर्द है वही बिछोह है , उस वक्त से मुक्ति पाने की कोशिश की भी नहीं जानी चाहिए अगर जख्म न हो तो शायद अपनी कैफियत का पता न लगे |ये कहना कि वैसे अल्फाज नहीं कहे जा सकेंगे जो किसी को अपना बना दे ,कविता को झिंझोड़ते हुए उसको लहुलुहान करता है और हाँ ,ये अमानवीय भी है | अदभुत
नहीं कह पाउंगी
ऐसे अलफ़ाज़,
जो किसी को
बना दे मेरा,
और पा सकूँ
कोई सुखद एहसास !
बहुत सुन्दर रचना ! आभार
अरे अरे ऐसा ना कहें ………इतनी नाउम्मीदी ठीक नही…………एक् पहर ही तो है…………ये कब किसी की ज़िन्दगी मे ठहरा है …………इसे तो गुजरना ही होगा…………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
कुछ बोलूं,
वो पहर
अपने ज़ख़्म से,
रंग देता
मेरे हर्फ़ !
बेहतरीन शब्द रचना ।
gazab ki khoobsrti hai har pangti men....
पर नहीं,
अब शायद
कभी नहीं,
ज़ख़्मी वक़्त से
मुक्ति नहीं
पर नहीं,
अब शायद
कभी नहीं,
ज़ख़्मी वक़्त से
मुक्ति नहीं !
aah! shabnam ji bahut hi khoobsurat rachna hai
in lines main bebasi ka charm tak pahuchna kamaal hai.
shukriya
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति दिल को छू जाती है
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (26.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
कोई एक पल किस तरह छा जाता है पूरे जीवन पर , उसे कब्जे में कर लेता है ! बहुत भावपूर्ण रचना !
कुछ बोलूं,
वो पहर
अपने ज़ख़्म से,
रंग देता
मेरे हर्फ़ !
बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।
sundar bhav samete aapki rachana,
pratimanon ke sath bhavnaon ka
sammilan, achha lagata hai .badhayiyan .
जेन्नी शबनम जी आपकी कविताओं स्वर बहुत अलग है। लगता है शब्दों के किनारों को गीला करता कोई दरिया बह रहा हो ; और आपकी ये पंक्तियाँ पढ़कर-
नहीं कह पाऊँगी
ऐसे अलफ़ाज़,
जो किसी को
बना दे मेरा,
और पा सकूँ
कोई सुखद एहसास !
मुझे कहना पड़ रहा है कि हम सब आपके अपने ही तो हैं ,आपके मन और विश्वास के बहुत निकट हैं। बहुत आदर और सम्मान के साथ- रामेश्वर काम्बोज
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