ऐ ज़िन्दगी
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तल्ख़ धूप कितना जलाएगी
अब तो बीत जाए दिन बुरा
रहम कर हम पर, ऐ ज़िन्दगी।
बाबस्ता नहीं कोई
दर्द बाँटें किससे बता
चुप हो जी ले, ऐ ज़िन्दगी।
दिन के उजाले में स्वप्न पले
ढल गई शाम अब करें क्या
किसका रस्ता देखें, ऐ ज़िन्दगी।
वो कहते हैं समंदर में प्यासे रह गए
नदी की तरफ़ वो चले ही कब भला
गिला किससे शिकवा क्यों, ऐ ज़िन्दगी।
न मिज़ाज पूछते न कहते अपनी
समझें कैसे उनकी मोहब्बत बता
तू भी हँस ले, ऐ ज़िन्दगी।
- जेन्नी शबनम (21. 3. 2011)
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तल्ख़ धूप कितना जलाएगी
अब तो बीत जाए दिन बुरा
रहम कर हम पर, ऐ ज़िन्दगी।
बाबस्ता नहीं कोई
दर्द बाँटें किससे बता
चुप हो जी ले, ऐ ज़िन्दगी।
दिन के उजाले में स्वप्न पले
ढल गई शाम अब करें क्या
किसका रस्ता देखें, ऐ ज़िन्दगी।
वो कहते हैं समंदर में प्यासे रह गए
नदी की तरफ़ वो चले ही कब भला
गिला किससे शिकवा क्यों, ऐ ज़िन्दगी।
न मिज़ाज पूछते न कहते अपनी
समझें कैसे उनकी मोहब्बत बता
तू भी हँस ले, ऐ ज़िन्दगी।
- जेन्नी शबनम (21. 3. 2011)
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8 टिप्पणियां:
सुन्दर अभिव्यक्ति!
न मिज़ाज पूछते न कहते अपनी,
समझें कैसे, उनकी मोहब्बत बता,
तू भी हँस ले, ऐ ज़िन्दगी !
--
वियोगी होगा पहला कवि,
हृदय से उपजा होगा गान!
निकल कर नयनों से चुपचाप,
बही होगी कविता अनजान!
--
सुन्दर अभिव्यक्ति!
वो कहते हैं समंदर में प्यासे रह गए
नदी की तरफ, वो चले हीं कब भला,
गिला किससे शिकवा क्यों, ऐ ज़िन्दगी !
bahut hi badhiyaa
सुंदर भावाभिव्यक्ति।
न मिज़ाज पूछते न कहते अपनी,
समझें कैसे, उनकी मोहब्बत बता,
तू भी हँस ले, ऐ ज़िन्दगी !
बहुत खूब ...ज़िंदगी तो जीनी ही है फिर शिकवा शिकायत भी क्या ?
तल्ख़ धूप कितना जलायेगी
अब तो बीत जाये, दिन बुरा,
रहम कर हमपे, ऐ ज़िन्दगी !
itni तल्ख़ ki bayaan nhi kar sakti ..
वो कहते हैं समंदर में प्यासे रह गए
नदी की तरफ, वो चले हीं कब भला,
गिला किससे शिकवा क्यों, ऐ ज़िन्दगी !
न मिज़ाज पूछते न कहते अपनी,
समझें कैसे, उनकी मोहब्बत बता,
तू भी हँस ले, ऐ ज़िन्दगी !
-ये पंक्तियाँ हृदय को आन्दोलित ।कर देती हैं । नदी की तरफ़ न आना ही प्यासे रह जाने का कारण है ।व्यथा को प्रस्तुत करने का अन्दाज़ बहुत मार्मिक है । जेन्नी जी हार्दिक बधाई
बहुत खूब .. शिकवा शिकायत भी
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