शनिवार, 9 अप्रैल 2011

229. अजनबियों-सा सलाम (क्षणिका)

अजनबियों-सा सलाम

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मुलाक़ात भी होगी
नज़रों से एहतराम भी होगा
दो अजनबियों-सा कोई सलाम तो होगा

- जेन्नी शबनम (6. 4. 2011)
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8 टिप्‍पणियां:

mridula pradhan ने कहा…

salaam zaroor hoga......bahut achchi lagi.

सहज साहित्य ने कहा…

मुलाक़ात भी होगी
नज़रों से एहतराम भी होगा,
दो अजनबियों सा कोई सलाम तो होगा!
-इन तीन पंक्तियों में आपने सारे अभिवादन समेट लिये हैं। जहाँ नितान्त अपनापन हो , वहाँ सारे अभिवादन और औपचारिकताएँ साथ छोड़ देती हैं । जो रह जाता है , वह सिर्फ़ एक तरल संवेदना , जिसे हृदय महसूस करता है , भाषा मूक होकर रह जाती है । बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति !

Udan Tashtari ने कहा…

जरुर होगा...

आक्रोशित मन ...ना माने मन की बात ने कहा…

लूट जायेगे मिट जायेगे ...दिल मिलने का सब खेल , दीवाने फिर भी चाहेगे ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा शेर लिखा है आपने।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

zarur zarur hoga

SAJAN.AAWARA ने कहा…

MAM BAHUT ACHCHHA SHER HAI. SALAM.

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

एक अजनबी का सलाम आपके लिए...।

प्रियंका