रविवार, 5 जून 2011

250. कविता के पात्र हो

कविता के पात्र हो

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मेरी कविता पढ़ते हुए
अचानक रुक गए तुम
उसमें ख़ुद को तलाशते हुए
पूछ बैठे तुम
कौन है इस कविता में?
मैं तुम्हें देखती रही अपलक
ख़ुद को कैसे न देख पाते हो तुम?
जब हवाएँ नहीं गुज़रती
बिना तुमसे होकर
मेरी कविता कैसे रचेगी
बिना तुमसे मिलकर
हर बार तुमको बताती हूँ
कि कौन है इस कविता का पात्र
और किस कविता में हो सिर्फ़ तुम
फिर भी कहते हो
क्या मैं सिर्फ कविता का एक पात्र हूँ?
क्या तुम्हारी ज़िन्दगी का नहीं?
प्रश्न स्वयं से भी करती हूँ
और उत्तर वही आता है
हाँ, तुम केवल मेरी कविता के पात्र हो!
मगर कविता क्या है?
मेरी ज़िन्दगी
मेरी पूरी ज़िन्दगी। 

- जेन्नी शबनम (5. 6. 2011)
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13 टिप्‍पणियां:

Fani Raj Mani CHANDAN ने कहा…

हाँ, तुम केवल मेरी कविता के पात्र हो,
मगर कविता क्या है?
मेरी ज़िन्दगी
मेरी पूरी ज़िन्दगी!

bahut achchhi rachnaa...

Unknown ने कहा…

बहुत ही शानदार उदगार बधाई

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तुम मेरी कविता के पात्र हो,
कविता क्या है?
मेरी ज़िन्दगी
मेरी पूरी ज़िन्दगी!... ab shesh raha kya !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा रचना है यह!

एक मिसरा यह भी देख लें!

दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है

Vivek Jain ने कहा…

तुम मेरी कविता के पात्र हो,
कविता क्या है?
मेरी ज़िन्दगी
मेरी पूरी ज़िन्दगी!...

सुन्दर भावाव्यक्ति।
बधाई हो आपको - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Jyoti Mishra ने कहा…

Nice read...
beautifully crafted !!

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही शानदार रचना है

संजय भास्‍कर ने कहा…

कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ..

Rachana ने कहा…

sunder kavita
मेरी ज़िन्दगी
मेरी पूरी ज़िन्दगी!
sahi hai bas samjhne ki bat hai
rachana

सहज साहित्य ने कहा…

नया रूप , नया रंग और नया तेवर साथ ही कविता को जीने के लिए दिए गया सूत्र -कविता में खुद की तलाश । जेन्नी शबनम जी यही तो हुई सच्ची कविता कि हर पाठक उस रचना में खुद को तलाशे और पा जाए कि अरे ! ये तो मैं हूँ , यह तो मेरा दर्द है और यह रही मेरी मुस्कान !आपका काव्य और आपका दर्शन शास्त्र का गहन अध्ययन हमें परिपक्व चिन्तन और उसके भीतर छटपटाती अभिव्यक्ति की त्वरा के दर्शन कराता है । हृदयग्राही कविता !

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

खूबसूरत कविता... दिल को छू कर गुज़र गई...

रजनीश तिवारी ने कहा…

पूछ बैठे तुम
कौन है इस कविता में?
मैं तुम्हें देखती रही अपलक
ख़ुद को कैसे न देख पाते हो तुम?
बहुत अच्छी रचना ....

बेनामी ने कहा…

वाह - वाह