रविवार, 10 जुलाई 2011

264. आत्मकथा

आत्मकथा

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एक सदी तक चहकती फिरी
घर आँगन गलियों में
थी कथा परियों की
और जीवन फुदकती गौरैया-सी।   

दूसरी सदी में आ बसी
हर कोने चौखट चौबारे में
कण-कण में बिछती रही
बगिया में ख़ुशबू-सी।    

तीसरी सदी तक आ पहुँची
घर की गौरैया अब उड़ जाएगी
घर आँगन होगा सूना
याद बहुत आएगी
कोई गौरैया है आने को
अपनी दूसरी सदी में जीने को
कण-कण में समाएगी
घर आँगन वो खिलाएगी।  

ख़ुद को अब समेट रही
बिखरे निशाँ पोंछ रही
यादों में कुछ दिन जीना है
चौथी सदी बिताना है
फिर तस्वीर में सिमट जाना है।   

जाने कैसी ये आत्मकथा
मेरी उसकी सबकी
एक जैसी है
खिलना बिछना सिमटना
ख़त्म होती यूँ
गौरैया की कहानी है।   

- जेन्नी शबनम (30. 5. 2011)
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17 टिप्‍पणियां:

Dr. Yogendra Pal ने कहा…

गौरैया की कमी तो मुझे भी बहुत खिलती है

वीडियो - नये ब्लोगर डैशबोर्ड से संक्षिप्त परिचय

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी रचना में गौरैय्या को पाकर अच्चा लगा!
क्योंकि हमारे यहाँ तो पिछले 15 सालों से गौरैया गायब ही हो गईं हैं!

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

चौथी सदी बीताना है
फिर तस्वीर में सिमट जाना है|
जाने कैसी ये आत्मकथा
मेरी उसकी सबकी
एक जैसी है,
waah !!! वाह ! लम्हों का सफर शब्दों में ढल गया ...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

जाने कैसी ये आत्मकथा
मेरी उसकी सबकी
एक जैसी है,
खिलना बिछना सिमटना
ख़त्म होती यूँ
गौरैया की कहानी है|... gauraiya jaisa apna sach

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

kyaa baat hai kya kahaani hai bhai ...akhtar khan akela kota rajsthan

रविकर ने कहा…

sundar Post.

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (11-7-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

सहज साहित्य ने कहा…

शबनम जी की कविताओं का खज़ाना भी कितना अमूल्य है ।भावों और विचारों की खुशबू में खूब रचा-बसा । गौरैया जैसे विषय पर अनेक अर्थ की पर्तें खोलती उत्त्कृष्ट कविता है । ये पंक्तियाँ तो हृदय और बुद्धि सबको तरंगित कर देती हैं- "घर की गौरैया
अब उड़ जायेगी,
घर आँगन होगा सूना
याद बहुत आएगी,
XXX
यादों में कुछ दिन जीना है
चौथी सदी बिताना है
फिर तस्वीर में सिमट जाना है|
जाने कैसी ये आत्मकथा
मेरी उसकी सबकी
एक जैसी है,
खिलना बिछना सिमटना
ख़त्म होती यूँ
गौरैया की कहानी है|" इस गौरैया की कहानी का विस्तार तो बहुत ज़्यादा है । सबको समेटे है शबनम जी ! इस तरह के लेखन के लिए शुभकामनाएँ।

बेनामी ने कहा…

"घर की गौरैया
अब उड़ जायेगी,
घर आँगन होगा सूना
याद बहुत आएगी"

"गौरैया" नाम ही सम्मोहित करता है - आपने उसे नया आयाम दिया - बधाई

विभूति" ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत...

मनोज कुमार ने कहा…

सबकी यही कहानी।

Rahul Singh ने कहा…

सार्थक गौरैया.

वाणी गीत ने कहा…

गौरैया की कहानी में पूरा जीवन वृतांत है !

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

गौरैया ....सुन्दर प्रस्तुति

Rajesh Kumari ने कहा…

poore jeevan chakra ko shabdon me dhalkar kavita ka bahut achcha svaroop pradan kiya hai.bahut sashakt kavita.aabhar Shabnam ji.

संजय भास्‍कर ने कहा…

गौरैया की कमी बहुत खिलती है वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने जवाब नहीं इस रचना का........ बहुत खूबसूरत......

संजय भास्‍कर ने कहा…

अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,