शनिवार, 31 दिसंबर 2011

309. बीत गया

बीत गया

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तय मौसम का एक मौसम
अच्छा हुआ बीत गया
हार का एक मनका
अच्छा हुआ टूट गया।  
समय का मौसम
मन का मनका
साथ-साथ बिलख पड़े
आस का पंछी रूठ गया। 
दोपहरी जलाती रही
साँझ कभी आती नहीं
ये भी किस्सा ख़ूब रहा
तमाशबीन मेरा मन रहा। 
हर कथा का सार वही
जीवन का आधार वही
वक़्त से रंज क्यों
फ़लसफ़ा मेरा कह रहा। 

- जेन्नी शबनम (31. 12. 2011)
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10 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Behad achhee lagee aapkee rachana!
Naya saal aapko bahut,bahut mubarak ho!

मनोज कुमार ने कहा…

आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं!

विभूति" ने कहा…

हर कथा का सार वही
जीवन का आधार वही
वक़्त से रंज क्यों
फ़लसफ़ा मेरा कह रहा !सच्ची बात कही.....बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
अभिव्यक्ति.........नववर्ष की शुभकामनायें.....

amit kumar srivastava ने कहा…

नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएँ।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

संकल्प के व्यूह से अलग रहो
क्या अच्छा है क्या बुरा समझो
चयन करो , कदम उठाओ
नया वर्ष तुम्हारा है ..... विश्वास रखो

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सुंदर प्रस्तुती बहुत अच्छी रचना रचना,.....
नववर्ष 2012 की हार्दिक शुभकामनाए..

--"नये साल की खुशी मनाएं"--

Rakesh Kumar ने कहा…

तमाशबीन मेरा मन रहा !
हर कथा का सार वही
जीवन का आधार वही
वक़्त से रंज क्यों
फ़लसफ़ा मेरा कह रहा !

बहुत अच्छी लगी आपकी यह भावपूर्ण
अभिव्यक्ति.

ब्लॉग जगत में आपसे परिचय वर्ष २०११
की एक सुखद उपलब्धि रही.

नववर्ष आपको व आपके समस्त परिवार
को शुभ व मंगलकारी हो यही दुआ
और कामना है मेरी.

A very very happy new year to you.

dinesh aggarwal ने कहा…

हार का एक मनका अच्छा हुआ टूट गया।
सुन्दर,अति सुन्दर.....
नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।

***Punam*** ने कहा…

naya saal mangalmay ho...

Rakesh Kumar ने कहा…

आपकी हर प्रस्तुति लाजबाब लगती है.
शब्द और भाव आपके अनुपम हृदय का
स्पर्श पा संजीव हो उठ्ते हैं.