बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

318. मछली या समंदर

मछली या समंदर

***

बिना अपनी सहमति
अभिशप्त गलियों से महज़ गुज़रना
बदनामी का सबब बन जाता है
वैसे ही जैसे किसी संक्रमित गली की बहती हुई हवा
कोढ़ की तरह मन में घाव बना देती है। 

विवशता की कहानी
जाने कैसे समंदर में विलीन हो जाती है
जब मछली जाल में पकड़कर आती है
तो समंदर निष्कलंक रह जाता है
सिर्फ़ मछली क्रूरता का दंश झेलती है। 

एक सवाल दुनिया से 
घात किसने लगाया
मछली या समंदर ने?

- जेन्नी शबनम (1.2.2012)
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24 टिप्‍पणियां:

वाणी गीत ने कहा…

गज़ब !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

समंदर तो हमेशा गहरा , विशाल , निर्भीक होता है ... मछली हो या यादों के कुछ सिले ... उनकी क्या औकात ! समंदर निष्कलंक ही रहता है

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

और जब मछली
जाल में पकड़ कर आती है
तो समंदर निष्कलंक रह जाता है
सिर्फ मछली क्रूरता का दंश झेलती है !.....


बेजोड लेखनी ...मछली का दंश समझ में आता हैं या ....शायद कोई समझना ही नहीं चाहता

मनोज कुमार ने कहा…

क्या जवाब दें इस प्रश्न का?
एक शे’र ही ...

अजब मयार था, सच बोलने वालों की महफिल का
जो देखा तो जमाने भर का झूठा आगे-आगे था

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut kuch sochne par vivash karti rachna jaalim samaaj me machli hi sab kasht bhogti hai samaaj anjaan abodh ban jata hai.rachna ke madhyam se samajik kureetiyon par prahaar .padhkar bahut achcha laga.

Unknown ने कहा…

जब मछली/जाल में पकड़ कर आती है/तो समंदर निष्कलंक रह जाता है......मैं नहीं जानता आपके भीतर से ये कवितायेँ कैसे प्रस्फुटित होती हैं ,लेकिन इतना यकीं जरुर करने लगा हूँ कि आप सारी दुनिया की महिलाओं के दर्द ,दंश,उत्साह ,उल्लास और प्रेम को एक साथ जीती हैं |आपके एक एक शब्द को मेरा सलाम

vidya ने कहा…

गहन सोच में डालने वाली रचना..

बहुत खूब.

mridula pradhan ने कहा…

kya andaz hai......wah.

***Punam*** ने कहा…

kalank ka dansh keval kamjor ko hi jhelna padta hai...shaktishaali doshi hone par bhi apne aap ko bade aaram se nishkalankit nikaal le jaata hai....vahi aukaat vali baat saamne aa jati hai....bade ki badi aukaat aur chhota usi men pis jata hai....insaan ho ya paristhitiyan....kuchh niyam har jagah laagoo ho jaate hain...chahe sahi hon ya galat....!! aur apvaad kahan nahin hote...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

गहरे भाव लिए बेहतरीन रचना,लाजबाब प्रस्तुतीकरण..

NEW POST...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

आदरणीया जेन्नी शबनम जी कमाल की कविता है |आपकी कलम इसी तरह कोरे कागज पर शब्द सजाती रहे जिसे लोग कविता कहते हैं |बधाई |

kshama ने कहा…

एक सवाल
दुनिया से...
घात किसने लगाया
मछली या समंदर?
Kaisa gahan sawaal hai!

सदा ने कहा…

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

Nidhi ने कहा…

विचारोत्तेजक रचना.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया।

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

विचारणीय सवाल...
समंदर तो निष्कलंक ही रहता है|

Monika Jain ने कहा…

vicharneey avam prabhavi rachna

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.in/2012/02/777.html
चर्चा मंच-777-:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

Gyan Darpan ने कहा…

शानदार

Gyan Darpan
..

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

और जब मछली
जाल में पकड़ कर आती है
तो समंदर निष्कलंक रह जाता है
सिर्फ मछली क्रूरता का दंश झेलती है !.....

vah bahut khoob shabanam ji ....bolkul lajabab rachana

kavita verma ने कहा…

gahan soch ke sath ek anjane dard ko bakhoobi uchhala hai aapne....

amrendra "amar" ने कहा…

waah bahut khoob, sochne pe majbur krti aapki ye behtreen prastuti

Pallavi saxena ने कहा…

बहुत कम शब्दों में बहुत गहरी बात...सोचने पर मजबूर करती प्रभावशाली रचना..... http://mhare-anubhav.blogspot.com/ समय मिले कभी तो आयेगा मेरी इस पोस्ट पर आपका स्वागत है

Rakesh Kumar ने कहा…

आपकी अभिव्यक्ति कमाल की है.
गहन चिंतन और प्रश्न करती.

आभार.