बुधवार, 25 जनवरी 2012

317. स्वतः नहीं जन्मी

स्वतः नहीं जन्मी

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नहीं मालूम, मैं हैरान हूँ या परेशान
पर यथास्थिति को समझने में, नाकाम हूँ,
समझ नहीं आता
ज़िन्दगी की करवटों को
किस रूप में लूँ
जिस चुप्पी को मैंने ओढ़ लिया
या उसे जिसे मानने के लिए दिल सहमत नहीं,
मेरे दोस्त!
मौनता मुझमें स्वतः नहीं जन्मी
न उपजी है मुझमें
मैंने ख़ामोशी को जन्म दिया है
वक़्त से निभाकर,
अब दरकिनार हो गई ज़िन्दगी 
उन सबसे
जिसमें तूफ़ान भी था
नदी भी और बरसते हुए बादल भी
तसल्ली से देखो
सब अपनी-अपनी जगह आज भी यथावत हैं,
मैं ही नामुराद
न बह सकी, न चल सकी, न रुक सकी। 

- जेन्नी शबनम (17. 1. 2012)
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16 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

मैं ही नामुराद
न बह सकी
न चल सकी
न रुक सकी !
Aapka jeevan pravaah to bahut badhiya gatee se chal raha hai! Prerak zindagee hai aapkee!

Nirantar ने कहा…

मैं ही नामुराद
न बह सकी
न चल सकी
न रुक सकी !

zindgee mein kai baar aisaa hotaa hai
kuchh samajh nahee aataa
insaan kuchh kah nahee paataa
khamoshee se sahtaa rahtaa

behatreen khyaalaat

प्रेम सरोवर ने कहा…

शबनम जी , ये जिंदगी भी बड़ी अचीब चीज है । हमे हर पल कभी हसाती है तो कभी रूलाती भी है । इसके कुछ नियम हैं । यह भी उनके साथ बंधी है । इसमे हैरान एवं परेशान होने की कोई जरूरत नही है । दुख होता है कि हम जैसा चाहते हैं वैसा नही होता । मन में जीवन के प्रति विश्वास एवं अदम्य उत्साह की बुनियाद डालने की कोशिश कीजिए एवं तब अनुभव कीजिएगा कि यह जिंदगी कितनी खुबसूरत दिखाई पड़ेगी । कविता का भाव आपके निजी हैं, इसलिए अभिव्यक्ति का स्वरूप अच्छा लगा । धन्यवाद ।

dinesh aggarwal ने कहा…

दिल की गहराईयों को छूती हुई रचना।
बधाई......
कृपया इसे भी पढ़े-
क्या यही गणतंत्र है

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मौन बेवजह आकृति नहीं लेता , पर जब लेता है तो बहुत कुछ कहता है और वही सच है , सही रास्ता है

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Jeevan ke raste kabhi kabhi moun odhne ko majboor kar dete hain ... bhaav poorn rachna ...

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|

Pallavi saxena ने कहा…

सच में कितना कुछ है ज़िंदगी में ज़िंदगी के ऊपर लिखने के लिए मैंने भी बहुत कुछ लिखा है समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://aapki-pasand.blogspot.com

Shanti Garg ने कहा…

बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

सहज साहित्य ने कहा…

आपकी यह कविता मन की गुत्थियों की गाँठ खोलती है और चुपचाप बहुत कुछ बोलती है ।

amrendra "amar" ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

Neelkamal Vaishnaw ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव हैं आपकी इस कविता में
अब दरकिनार हो गई ज़िन्दगी
उन सबसे
जिसमें तूफ़ान भी था
नदी भी
और बरसते हुए बादल भी,

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही अच्छी कविता जेन्नी शबनम जी |

dinesh aggarwal ने कहा…

मैं ही नामुराद
न बह सकी
न चल सकी
न रुक सकी !
बेहतरीन प्रस्तुति
क्या यही गणतंत्र है

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर भाव पूर्ण बेहतरीन प्रस्तुति,
welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....

Rakesh Kumar ने कहा…

मैं ही नामुराद
न बह सकी
न चल सकी
न रुक सकी !

asmanjas ki sthiti men maun
hi rahna behatar hai.

par nakaaraatmak chintan?

aapki prastuti hamesha hi
bhav aur darshan se
saraabor hoti hai.

laptop aur net ki samsya se hindi
men type nahi kar paaya,aur der se
aana hua.Kshama chahata hun.