अब और कितना
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कैलेंडर में हर गुज़रे दिन को
लाल स्याही से काटकर बीतने का निशान लगाती हूँ
साल-दर-साल अनवरत
कोई अंतिम दिन नहीं आता जो ठहरता हो
न कोई ऐसी तारीख़ आती है
जिसके गुज़रने का अफ़सोस न हो
प्रतीक्षा की मियाद मानो निर्धारित हो
आह! अब और कितना?
किसी तरह हो, बस अंत हो।
लाल स्याही से काटकर बीतने का निशान लगाती हूँ
साल-दर-साल अनवरत
कोई अंतिम दिन नहीं आता जो ठहरता हो
न कोई ऐसी तारीख़ आती है
जिसके गुज़रने का अफ़सोस न हो
प्रतीक्षा की मियाद मानो निर्धारित हो
आह! अब और कितना?
किसी तरह हो, बस अंत हो।
- जेन्नी शबनम (8. 2. 2012)
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12 टिप्पणियां:
एक समय ऐसा भी आएगा जब हम सबकी सांसे हमेशा के लिए रुक जाएगी पर वक्त वहां भी नहीं ठहरेगा ! हमें छोड़ कर आगे बढ़ जायेगा !
सुन्दर प्रस्तुति !
आभार !
जब तक हम ढूंढते हैं , अंत नहीं आता - जब निस्तैल आँखें होती हैं तो सब कुछ ठहर ही जाता है
Aah!
अरे नहीं...........
जीवन भी चले..लेखनी भी सरपट दौड़े...
शुभकामनाएँ.
आह्ह्
अब और कितना...
किसी तरह हो
बस अंत हो !
आदि का अंत तो होगा ही ....
सुंदर गहन भाव ...
मर्म को छूते हुए से ...
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
कोई अंतिम दिन नहीं आता
जो मेरे लिए ठहरता हो
न कोई ऐसी तारीख़ आती
जिसके गुजरने का अफ़सोस न हो,
प्रतीक्षा की मियाद
मानो निर्धारित हो
और उस निर्धारित का आधार ही पकड़ में नहीं आता....
प्रतीक्षा सदा ही अखरती है फिर भले ही वो किसी भी चीज़ की हो....गहरी भावपूर्ण रचना
शबनम जी, मुझे अपने लोगों से आत्मीयता की सुरभि मिलती है । आपकी प्रस्तुत कविता के संबंध में यही कहना चाहूंगा कि - मन तो एक ही होता है , दस बीस तो नही । आपकी कविता मन के संबेदनशील तारों को झंकृत कर गई । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद । .
साल दर साल अनवरत,
कोई अंतिम दिन नहीं आता
जो मेरे लिए ठहरता हो
न कोई ऐसी तारीख़ आती
जिसके गुजरने का अफ़सोस न हो,
प्रतीक्षा की मियाद
मानो निर्धारित हो -सचमुच जीवन में ऐसा कुछ होता ही नहीं जो ठहर जाए और ऐसे पल बहुत होते हैं जो हमारे हाथ से फिसल ही जाते हैं , पारे की तरह । बहुत सार्थक बात कही है।
आपकी रचना बहुत अच्छी लगी,जिंदगी इसी तरह चलती रहती है,अंत सिर्फ मौत है
MY NEW POST...मेरे छोटे से आँगन में...
wah.....
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