क्या बन सकोगे एक इमरोज़
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तुमने सिर्फ़ किताबें पढ़ी हैं
या फिर अमृता-सा जिया है,
क्या समझते हो
इमरोज़ बनना इतना आसान है?
हाँ-हाँ, मालूम है
नहीं बनना इमरोज़
ये उनका फ़लसफ़ा था,
एक समर्पित पुरुष
जिसे स्त्री का प्रेमी भी पसंद है
इसलिए कि वो प्रेम में है।
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तुमने सिर्फ़ किताबें पढ़ी हैं
या फिर अमृता-सा जिया है,
क्या समझते हो
इमरोज़ बनना इतना आसान है?
हाँ-हाँ, मालूम है
नहीं बनना इमरोज़
ये उनका फ़लसफ़ा था,
एक समर्पित पुरुष
जिसे स्त्री का प्रेमी भी पसंद है
इसलिए कि वो प्रेम में है।
ये संभव नहीं
उम्र की बात नहीं,
इमा-इमा पुकारती अमृता
माझा-माझा कह दौड़ पड़ता इमरोज़
अशक्त काया की शक्ति बनकर,
गुज़री अमृता के लिए चाय बनाता इमरोज़
वो पुरुष जिसे न मान न अभिमान
क्या बन सकोगे एक इमरोज़?
ओह हो...!
अमृता इमरोज़ ही क्यों?
कहते हैं
जो नहीं मिलते उनका प्यार अमर होता है
फिर इनका क्यों?
न जाने कितने अमृता-इमरोज़ हुए
वक़्त कि पेशानी पे बल पड़े
शायद वक़्त से सहन न हुआ होगा
हर ऐसे इमरोज़ को पुरुष बना दिया होगा,
हर अमृता तो सदा एक-सी ही रही होगी
अपनी उदासियों में किसी को आत्मा में बसाए
किसी के लिए कविता बुन रही होगी
या फिर किसी के लिए जी रही होगी,
पर हर इमरोज़ पुरुष क्यों बन जाता है?
हर इमरोज़ इमरोज़-सा क्यों नहीं बन पाता है?
क्या बोलते हो ?
पुरुष और नारी का फ़र्क़ नहीं जानते
बिछोह की अमर कथाओं में
एक कथा मिलन की,
क्या सोचते हो
कथा जीवन है?
ये उनका जीवन
ये हमारा जीवन
जहाँ मन भटकता है
किसी नए को तलाशता है,
न हमें बनना अमृता-इमरोज़
न तुम बनो अमृता-इमरोज़।
- जेन्नी शबनम (26. 1. 2012)
(इमरोज़ जी के जन्मदिन पर)
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18 टिप्पणियां:
nahi banna imroj...bikul sach apna pyaar humesh molik hota hai use maulik hi rakhna chahiye aur kisi ke naam ka mukhota apne vajood par kis liye .bahut achchi prastuti.
इमरोज़ होना यानि प्यार में खुद को भुलाकर मील का पत्थर होना - आसान नहीं .
पर तलाश जारी है ख्वाहिशों के सपनों में
बहुत सुन्दर...
आसान नहीं इमरोज बनना...
मुझे तो यकीं ही नहीं है-
इमरोज़ का इमरोज़ होना !!!
सस्नेह..
इमरोज़ बनना आसान कहाँ?
हर अमृता तो सदा एक सी हीं रही होगी
अपनी उदासियों में किसी को आत्मा में बसाए
किसी के लिए कविता बुन रही होगी
या फिर किसी के लिए जी रही होगी,
Aap shayad sahee kah rahee hain!
न हमे बनना अमृता इमरोज
न तुम बनो अमृता-इमरोज
बहुत बढ़िया भाव लिए रचना,सुंदर प्रस्तुति..
NEW POST..फुहार..कितने हसीन है आप...
बहुत मुश्किल है इमरोज़ बनना ...
इमरोज़ बनना इतना आसान है ?सुंदर प्रस्तुति..
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
चाहो तो क्या नहीं हो सकता..! शायद कहीं कोई बना हो ..
kalamdaan.blogspot.in
बहुत गहन विचार और आत्ममंथन का परिणाम है जेन्नी जी आपकी कविता ।'आपका यह कथन तो शाश्वत सत्य-'कहते हैं
जो नहीं मिलते उनका प्यार अमर होता है।" आज की दुनिया में सबकी गति-दुर्गति एक सी होती है -प्रेम न करने वाले की और प्रेम करने वाले की भी । कारण प्रेम महसूस करने वाली चीज़ है , इसे खानों में नहीं बाँटा जा सकता। अविश्वास इसको मारने वाला विष है और विश्वास अमृत । अमृत और विष के जनक हम ही हैं । आपको ढेर सारी बधाई ।
वो पुरुष जिसे न मान न अभिमान
क्या बन सकोगे एक इमरोज़ ?
इतना समर्पण ...बहुत मुश्किल से कोई ऐसा होता होगा ....!!
सुंदर रचना ...
जो इस रिश्ते की पवित्रता को जानता है उसके तो दिल में सीधे उतर गई होगी ये रचना ... हाँ आसान नहीं है इमरोज़ बनना ... लाजवाब रचना ....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
आभार !
न हमें बनना अमृता-इमरोज़
न तुम बनो अमृता-इमरोज़
बहुत मुश्किल है
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
इस प्रश्नवाचक चिन्ह का पूर्ण विराम बनना आसान नहीं...........
imroj to awishwasniya ;lagte rahe hain hamesha se....itna samrpan badi mushkil se milta hai
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