वापस अपने घर
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अरसे बाद
ख़ुद के साथ वक़्त बीत रहा है
यों लगता है जैसे बहुत दूर से चलकर आए हैं
सदियों बाद वापस अपने घर।
उफ़! कितना कठिन था सफ़र
रास्ते में हज़ारों बन्धन
कहीं कामनाओं का ज्वारभाटा
कहीं भावनाओं की अनदेखी दीवार
कहीं छलावे की चकाचौंध रोशनी
इन सबसे बहकता, घबराता
बार-बार घायल होता मन
जो बार-बार हारता
लेकिन ज़िद पर अड़ा रहता
और हर बार नए सिरे से
सुकून तलाशता फिरता।
बहुत कठिन था, अडिग होना
इन सबसे पार जाना
उन कुण्ठाओं से बाहर निकलना
जो जन्म से ही विरासत में मिलती है
सारे बन्धनों को तोड़ना
जिसने आत्मा को जकड़ रखा था
ख़ुद को तलाशना, ख़ुद को वापस लाना
ख़ुद में ठहरना।
पर एक बार
एक बड़ा हौसला, एक बड़ा फ़ैसला
अन्तर्द्वन्द्व के विस्फोट का सामना
ख़ुद को समझने का साहस
फिर हर भटकाव से मुक्ति
फिर हर भटकाव से मुक्ति
अंततः अपने घर वापसी।
अब ज़रा-ज़रा-सी कसक
हल्की-हल्की-सी टीस
मगर कोई उद्विग्नता नहीं
कोई पछतावा नहीं
सब कुछ शान्त, स्थिर।
पर हाँ!
इन सब में जीने के लिए उम्र और वक़्त
हाथ से दोनों ही निकल गए।
-जेन्नी शबनम (28.7.2013)
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16 टिप्पणियां:
उन कुंठाओं से बाहर निकलना
जो जन्म से ही विरासत में मिलता है
सारे बंधनों को तोड़ना
जिसने आत्मा को जकड़ रखा था
खुद को तलाशना
बिलकुल सही , बहुत मुश्किल है
हाँ
इन सबमें
जीने को उम्र
और वक़्त
दोनों ही
हाथ से निकल गया !
shayad sabhi ke man ke bhav hai jo aapne apni is kavita me likha hai
badhai
rachana
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (28-07-2013) को त्वरित चर्चा डबल मज़ा चर्चा मंच पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सही बात, जिंदगी के प्रपंचों से निकलते निकलते उम्र बीत जाता है -बहुत बढ़िया प्रस्तुति
latest post हमारे नेताजी
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [29.07.2013]
चर्चामंच 1321 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
ज़िंदगी का लेखा जोखा कहती रचना ... पर वापसी तो हुई ।
मन के भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति..
बढिया बहुत सुंदर
खुद से खुद की तलाश ...बेहद कठिन सफर है
बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
कहा भी गया है देख लिया हमने जग सारा अपना घर है सबसे प्यारा........
संवेदना से भरी सुंदर रचना !!
असल बात समझने में एक उम्र निकल जाती है,
हाथों से अपने वक्त की वो डोर निकल जाती है ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
जीवट मन ज़िन्दगी को जीने की अद्भुत लालसा लिए
लौटना तो होता ही है ... और तब ही हिसाब होता है की कुय खोया क्या पाया स जीवन में ...
सुन्दर रचना...
:-)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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