पीर जिया की
(7 ताँका)
(7 ताँका)
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आँखों की कोर
जहाँ पे चुपके से
ठहरा लोर,
कहे निःशब्द कथा
मन अपनी व्यथा !
2.
छलके आँसू
बह गया कजरा
दर्द पसरा,
सुधबुध गँवाए
मन है घबराए !
3.
सह न पाए
मन कह न पाए
पीर जिया की,
फिर आँसू पिघले
छुप-छुप बरसे !
4.
मौसम आया
बहा कर ले गया
आँसू की नदी,
छँट गयी बदरी
जो आँखों में थी घिरी !
5.
मन का दर्द
तुम अब क्या जानो
क्यों पहचानो,
हुए जो परदेसी
छूटे हैं नाते देसी !
6.
बैरंग लौटे
मेरी आँखों में आँसू
खोए जो नाते,
अनजानों के वास्ते
काहे आँसू बहते !
7.
आँख का लोर
बहता शाम-भोर,
राह अगोरे
ताखे पर ज़िंदगी
नहीं कहीं अँजोर !
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लोर - आँसू
अँजोर - उजाला
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- जेन्नी शबनम (24. 9. 2013)
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15 टिप्पणियां:
प्रत्येक ताँका को पढ़कर मन भीगने लगता है । काव्य की गहराई पाठक को अपने से जोड़ लेती है ।जेन्नी शबन जी आपने इस विधा को गरिमा प्रदान की है ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (26-09-2013) चर्चा- 1380 में "मयंक का कोना" पर भी है!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अति सुंदर
बहुत सुन्दर ताँके....
सभी हृदयस्पर्शी...!!!
सादर
अनु
बहुत सुन्दर रचना जेनी सबनम जी !
नई पोस्ट साधू या शैतान
latest post कानून और दंड
sundar!!
.......बहुत ही बेहतरीन
बहुत सुंदर रचना ! बधाई
नई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
bahut acchhe shabd kalash .....bhawon ka neer ...
खूबसूरत ताका विधा मे जज़्बात
बैरंग लौटे
मेरी आँखों में आँसू
खोए जो नाते,
अनजानों के वास्ते
काहे आँसू बहते !
...दुखद लेकिन सुन्दर अभिव्यक्ति
जिया की पीर को तांका में बहुत खूबसूरती से पिरोया है .... भावपूर्ण तांका
मन का दर्द
तुम अब क्या जानो
क्यों पहचानो,
हुए जो परदेसी
छूटे हैं नाते देसी ! ...
मन की गहरी उदासी शब्द ले के बह आई हो जैसे ... भावपूर्ण हैं सभी छंद ..
AAPKEE CHHOTEE - CHHOTEE KAVITAAON
MEIN DARD MAN KO CHHOOTAA HAI .
BHAVABHIVYAKTI SUNDAR HAI .
sunder abhivyakti.
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