मंगलवार, 7 जनवरी 2014

435. जजमेंटल

जजमेंटल

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गुज़रे हो तुम सभी
इसी दौर से कभी
फिर
नई नस्लों के लिए
नई फ़सलों के लिए
क्योंकर एकपक्षीय हो जाते हो
क्यों जजमेंटल हो जाते हो,
यह तो विधि का विधान है
उम्र का रुझान है
निर्धारित क्रिया है
प्रकृति की प्रक्रिया है,
याद करो, तुम भी कभी भटके हो
कामनाओं के जंगल में
जहाँ सब सम्मोहित करता है
चुम्बक-सा खींचता है,
तुम भी चढ़े हो चमकती सीढ़ियों से
आसमान की छत पर
जहाँ मुठ्ठी भर के फ़ासले पर बैठा रहता है चाँद
तुम्हारी ही बाट जोहता हुआ,
तुम्हें भी तो दिखा होगा, रेगिस्तान में फूल ही फूल
कड़कती धूप बाधा नहीं छाया लगती होगी
कई बारिशों ने छुपाई होगी, आँखों की नमी
बेवक़्त दिल रोया होगा
अनजान राहों पे डरा होगा, फिर भी मचला होगा,
उस नदी को भी तैर कर पार किया होगा तुमने
जिसके दूसरे किनारे पर
हाथ के इशारे से कोई बुलाता है
जिसे दुनिया भी देख लेती है
रोकती है, ख़तरे से आगाह कराती है
मगर जान की बाज़ी लगा
तुम भी कूदे होगे और पहुँचे होगे नदी के पार
भ्रम की चमकती आकृतियों के पास
मुमकिन है वो हाथ सच्चा हो
बाद में भले कच्चा हो
या फिर इतना पक्का कि शिलाएँ हार मान जाए
या ये भी मुमकिन दिल तोड़ जाए,
तुमने भी तो गिर-गिरकर सँभलना सीखा
नियत समय को पकड़ना सीखा
बढ़ने दो मुझे भी वक़्त की रफ़्तार के साथ
उगने दो बेमौसम मुझे 
काँटों में से फूल चुनने दो
सारे एहसास मुझे भी खुद करने दो,
मुझे भी नापने दो 
धरती की सीमा
आसमान की ऊँचाई
दिल की गहराई
मन का गुनगुनापन
चाँद की शीतलता
सूर्य की ऊष्णता,
ख़ुद में भरने दो मुझे ख़ुद को
हँसने दो
रोने दो
नाचने दो
गाने दो
उम्र के साथ चलने दो,
बस एक हाथ थामे रहो
ताकि हौसला न मिटे, जब दिल टूटे,
अपने आईने में मुझे न परखो
मेरे आईने में मुझे देखो
अपने अनुभव के पिटारे से
उपदेश नहीं संदेश निकालो,
संदेह करो मगर अविश्वास नहीं
बस मेरे लिए जजमेंटल न बनो।

- जेन्नी शबनम (7. 1. 2014)
(पुत्री परान्तिका के जन्मदिन पर)
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17 टिप्‍पणियां:

वर्ज्य नारी स्वर ने कहा…

सुंदर रचना है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (07-01-2014) को पाक चाहता आप की, सेंटर में सरकार; चर्चा मंच 1485 में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Anupama Tripathi ने कहा…

अपने अनुभव के पिटारे से
उपदेश नहीं
संदेश निकालो,
संदेह करो
मगर अविश्वास नहीं
बस
मेरे लिए
जजमेंटल न बनो ।

गहन एवं सकारात्मक भाव ॥जीवन में आगे बढ़ने को प्रेरित करती रचना ....!!बहुत सुंदर रचना जेन्नी जी ...!!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह...उत्कृष्ट रचना!!!
अपने आईने में मुझे न परखो
मेरे आईने में मुझे देखो
अपने अनुभव के पिटारे से
उपदेश नहीं
संदेश निकालो,
संदेह करो
मगर अविश्वास नहीं
बस
मेरे लिए
जजमेंटल न बनो ।
बहुत ही सुन्दर!!

सादर
अनु

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

वाह...बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...

नयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो

Maheshwari kaneri ने कहा…

.बहुत बढ़िया प्रस्तुति..

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जले पर नमक - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

स्व. दुष्यंत कुमार की कविता के भाव याद आ गये.. जा तेरे स्वप्न बड़े हों.. बहुत ही प्रेरक भावों के साथ यह कविता अपने सम्पूर्ण आरोह अवरोह में एक सरिता की तरह प्रवाहित होती है.. शायद पहली बार मैं यहाम आया हूँ.. मगर मन प्रसन्न हुआ!!

mridula pradhan ने कहा…

अपने अनुभव के पिटारे से
उपदेश नहीं
संदेश निकालो.....bahut sunder.

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत बहुत बधाई इस खूबसूरत रचना के लिए आपको
जिंदगी में उजास ही उजास रहे
....

Amrita Tanmay ने कहा…

एक नए अंदाज में सुन्दर रचना.. बधाई!

Ramakant Singh ने कहा…

चीरकर सीधे पार जाती भावनाएं

Rakesh Kumar ने कहा…

अपने अनुभव के पिटारे से
उपदेश नहीं
संदेश निकालो,
संदेह करो
मगर अविश्वास नहीं

बहुत ही सुन्दर है आपकी यह भावाभिव्यक्ति.

आभार.

Anita ने कहा…

वाह...कितने गहरे अहसास और कितना अपनापन, आपकी यह कविता कितने फासले मिटा देती है..कितना कुछ कह जाती है..बहुत बहुत बधाई

Anita ने कहा…

वाह...कितने गहरे अहसास और कितना अपनापन, आपकी यह कविता कितने फासले मिटा देती है..कितना कुछ कह जाती है..बहुत बहुत बधाई

Asha Joglekar ने कहा…

बहुत सुंदर संदेश हमारी पीढी के लिये संदेह करो पर अविश्वास नही। संदेह से ज्यादा आशंका होती है अपने युवाओं के लिये। पर हमभी गुजरें है ुस दौर से जब अपने में दुर्दम्य विश्वास होता है और दुनिया जीतने की महत्वकांक्षा । इस को खच्ची करने का कोई हक नही हमको या किसी को भी।

Aditya Tikku ने कहा…

utam