पूरा का पूरा
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यूँ लगा मानो दुनिया पा गई
पर अब जाना तेरा आधा भी तेरा नहीं था
फिर तू कहाँ समेटता मेरे पूरे 'मैं' को
फिर तू कहाँ समेटता मेरे पूरे 'मैं' को
तूने जड़ दिया मुझे
मोबाइल के नंबर में पूरा का पूरा।
- जेन्नी शबनम (14. 1. 2014)
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11 टिप्पणियां:
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीयचर्चा मंच पर ।।
कमाल है आप की लेखनी और भावों का शब्द बंधन
गहरे शब्द ... जो आधा भी नहीं वो पूरा कैसे समेटेगा ...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ !
मेरे पूरे 'मैं' को तूने जड़ दिया मुझे मोबाइल के नंबर मेंपूरा का पूरा !
क्या बात है जेन्नी जी.
शुभकामनाएँ
:-(
बहुत सुन्दर प्रसूति !
मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !
वाह...बहुत बढिया..
बहुत खूब..काफी संक्षेप में गहरी बात कह दी।।।
सदियों से यही तो होता रहा है।
Gambhir rachna
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