बहुरुपिया
(5 ताँका)
(5 ताँका)
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1.
हवाई यात्राकरता ही रहता
मेरा सपना
न पहुँचा ही कहीं
न रुका ही कभी !
2.
बहुरुपिया
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा !
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा !
3.
कभी न जला
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया !
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया !
4.
कहीं डँसे न
मानव केंचुल में
छुपे हैं नाग
मीठी बोली बोल के
करें विष वमन !
मानव केंचुल में
छुपे हैं नाग
मीठी बोली बोल के
करें विष वमन !
5.
साथ हमारा
धरा-नभ का नाता
मिलते नहीं
मगर यूँ लगता -
आलिंगनबद्ध हों !
- जेन्नी शबनम (16. 4. 2014)
20 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना रविवार 27 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत सुंदर.
नई पोस्ट : मूक पशुएं और सौदर्य प्रसाधन
सभी ताँके बहुत बढिया हैं..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (26-04-2014) को ""मन की बात" (चर्चा मंच-1594) (चर्चा मंच-1587) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कितने बदल गए हम - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सुंदर तांके......अंतिम बहुत भाया।
सारी क्षणिकाएँ एक से बढकर एक हैं... सबकी अलग-अलग विशेषता है, लेकिन अंतिम क्षणिका ने हृदय को स्पर्श किया!!
सुन्दर रचना
सभी तांका गहन भाव लिए ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ..... एक से बढ़ कर एक तांका....
sunder abhivyakti kam shabdon mein gehre bhaav
shubhkamnayen
गहन अभिव्यक्ति...अति सुन्दर...खूबसूरत कथ्य...
सभी ताँका गहन भाव लिए हुए है.
कभी न जला
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया !
कहीं डँसे न
मानव केंचुल में
छुपे हैं नाग
मीठी बोली बोल के
करें विष वमन !
ये दोनों ताँका तो एकदम लाजवाब हैं– बधाई
एक से बढ़ कर एक..
कभी न जला
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया ..
सच कहा .. बहुत कठिन होता है अंतस के रावण को हमेशा के लिए जलाना ... खुद को मारना आसान कहाँ ...
कभी न जला
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया
समाज की हकीकत को प्रतिबिम्बित करती पंक्तियां...
बहुत ही सुन्दर सारगर्भित क्षणिकाएं .. सुन्दर सृजन आदरणीया ...
यही तो बात है मन भरमा जाता है -असलियत कुछ और !
सभी क्षणिकायें बहुत गहरे अर्थ लिए ...
बहुत बढ़िया जेन्नी जी
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