शनिवार, 4 अप्रैल 2015

493. सरल गाँव (गाँव पर 10 हाइकु) पुस्तक 70,71

सरल गाँव 

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1.
जीवन त्वरा
बची है परम्परा,     
सरल गाँव  

2.
घूँघट खुला, 
मनिहार जो लाया
हरी चूड़ियाँ। 

3.
भोर की वेला 
बनिहारी को चला   
खेत का साथी। 

4.
पनिहारिन 
मन की बतियाती  
पोखर सुने। 

5.
दुआ-नमस्ते
गाँव अपने रस्ते
साँझ को मिले। 

6.
खेतों ने ओढ़ी
हरी-हरी ओढ़नी
वो इठलाए। 

7.
असोरा ताके
कब लौटे गृहस्थ
थक हारके। 

8.
महुआ झरे
चुपचाप से पड़े,
सब विदेश। 

9.
उगा शहर
खंड-खंड टूटता
ग़रीब गाँव। 

10.
बाछी रम्भाए
अम्माँ गई जो खेत
चारा चुगने। 
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बनिहारी - खेतों में काम करना  
असोरा - ओसारा, दालान 
चुगने - एकत्र करना
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- जेन्नी शबनम (19. 3. 2015) 
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7 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

bahut sunder ....bhavpravan ...adbhut haiku !!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह मन को चीते हुए ... गाँव के सादेपन से जुड़े हैं सभी हाइकू ...

PRAN SHARMA ने कहा…

Badhiya Haaiku Padhwaane Ke liye
Aapka Aabhar

Onkar ने कहा…

सुन्दर हाइकु

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (06-04-2015) को "फिर से नये चिराग़ जलाने की बात कर" { चर्चा - 1939 } पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar ने कहा…

सुन्दर हाइकु

Asha Joglekar ने कहा…

ग्रामीण जीवन पर रचे सुंदर हाइकू।