दहक रही है ज़िन्दगी
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ज़िन्दगी के दायरे से भाग रही है ज़िन्दगी
ज़िन्दगी के हाशिये पर रुकी रही है ज़िन्दगी।
बेवज़ह वक़्त से हाथापाई होती रही ताउम्र
झंझावतों में उलझकर गुज़र रही है ज़िन्दगी।
गुलमोहर की चाह में पतझड़ से हो गई यारी
रफ़्ता-रफ़्ता उम्र गिरी ठूँठ हो रही है ज़िन्दगी।
ख़्वाब और फ़र्ज़ का भला मिलन यूँ होता कैसे
ज़मीं मयस्सर नहीं आस्माँ माँग रही है ज़िन्दगी।
सब कहते उजाले ओढ़के रह अपनी माँद में
अपनी ही आग से लिपट दहक रही है ज़िन्दगी।
- जेन्नी शबनम (4. 4. 2016)
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15 टिप्पणियां:
जीवन के कठोर यथार्थ का अनुभूतिपरक चित्रण।
हार्दिक बधाई जेन्नी जी।
Dil Mein Utarte Khyaalaat Ke Liye Badhaaee .
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-04-2016) को "गुज़र रही है ज़िन्दगी" (चर्चा अंक-2304) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपने लिखा...
कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 06/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 264 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
बढ़िया अभिव्यक्ति ,
मंगलकामनाएं आपको !
बेवजह वक़्त से हाथापाई होती रही ताउम्र
झंझावतों में उलझ कर गुज़र रही है ज़िन्दगी ...
सच है वक़्त के साथ दोस्ती करना ही बेहतर होता है ... बहुत ही लाजवाब शेर हैं ...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07-03-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2305 में दिया जाएगा
धन्यवाद
बहुत सुंदर लिखा है आपने।
कुछ ऐसी है जिन्दगी।।
ख़्वाब और फ़र्ज़ का भला मिलन यूँ होता कैसे
ज़मीं मयस्सर नहीं आस्मां माँग रही है ज़िन्दगी !
बहुत खूब लिखा ...
......."जमी-आसमा मे फर्क ही कहाँ ...होता
जमी फिसली तो तो आसमा भी हटा देखा .......
ख़्वाब और फ़र्ज़ का भला मिलन यूँ होता कैसे
ज़मीं मयस्सर नहीं आस्मां माँग रही है ज़िन्दगी !...बहुत ही खूबसूरत
बहुत सुन्दर .. नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ...
बहुत बढ़िया
बहुत अच्छा लिखती है आप । जिन्दगी की उम्मीदे बहुत होती है । बहुत सुंदर ।
kyaa baat hai.. ek se baDkar ek.. har ek sher umda..
ज़मीं मयस्सर नहीं आस्मां माँग रही है ज़िन्दगी ! wah!!
(www.kaunquest.com)
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