तय नहीं होता
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कोई तो फ़ासला है जो तय नहीं होता
सदियों का सफ़र लम्हे में तय नहीं होता।
अजनबी से रिश्तों की गवाही क्या
महज़ कहने से रिश्ता तय नहीं होता।
गगन की ऊँचाइयों पर सवाल क्यों
यूँ शिकायत से रास्ता तय नहीं होता।
कुछ तो दरमियाँ दूरी रही अनकही-सी
उम्र भर चले पर फ़ासला तय नहीं होता।
तक़दीर मिली मगर ज़रा तंग रही
कई जंग जन्मों में तय नहीं होता।
बाख़बर भ्रम में जीती रही 'शब' हँसके
मन की गुमराही से जीवन तय नहीं होता।
- जेन्नी शबनम (16. 6. 2016)
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8 टिप्पणियां:
अजनबी से रिश्तों की गवाही क्या
महज़ कहने से रिश्ता तय नही होता!
कुछ तो दरमियाँ दूरी रही अनकही-सी
उम्र भर चले पर फ़ासला तय नही होता !
बहुत बढ़िया
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-06-2016) को "वाह री ज़िन्दगी" (चर्चा अंक-2377) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " सुपरहिट फिल्मों की सुपरहिट गलतियाँ - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
गगन की ऊँचाइयों पर सवाल क्यों
यूँ शिकायत से रास्ता तय नही होता !
वाह बहुत सुंदर। बडे दिनो बाद आई आपके ब्लॉग पर और बहुत अच्छा लगा।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 19 जून 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
सुन्दर ग़ज़ल
बहुत सुन्दर और सही कहा
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