महाशाप
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किसी ऋषि ने
जाने किस युग में
किस रोष में दे दिया होगा
सूरज को महाशाप
नियमित, अनवरत, बेशर्त
नियमित, अनवरत, बेशर्त
जलते रहने का
दूसरों को उजाला देने का,
दूसरों को उजाला देने का,
बेचारा सूरज
अवश्य होत होगा निढाल
थककर बैठने का
करता होगा प्रयास
बिना जले बस कुछ पल रुके
उसका मन बहुत बहुत चाहता होगा
पर शापमुक्त होने का उपाय
ऋषि से बताया न होगा,
युग बीते, सदी बदली
पर वह फ़र्ज़ से नही भटका
न कभी अटका
हमें जीवन और ज्योति दे रहा है
अपना शाप जी रहा है।
कभी-कभी किसी का शाप
दूसरों का जीवन होता है।
- जेन्नी शबनम (7. 10. 2017)
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8 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-10-2017) को
"सलामत रहो साजना" (चर्चा अंक 2751)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Behtreen .
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जाने भी दो यारो ... “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत बढ़िया
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 09 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
बहुत सुंदर रचना
बहुत सुन्दर।
बहुत सुंदर विचार ! कभी कभी किसी का शाप दूसरों का जीवन होता है ।
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