गुरुवार, 16 नवंबर 2017

563. यक़ीन (क्षणिका)

यक़ीन

*******  
 
मुझे यक़ीन है  
एक दिन बंद दरवाज़ों से निकलेगी 
सुबह की किरणों का आवभगत करेगी 
रात की चाँदनी में नहाएगी, कोई धुन गुनगुनाएगी 
सारे अल्फ़ाज़ को घर में बंद करके 
सपनों की अनुभूतियों से लिपटी 
ज़िन्दगी मुस्कुराती हुई बेपरवाह घूमेगी  
हाँ! मुझे यक़ीन है, ज़िन्दगी फिर से जिएगी। 

- जेन्नी शबनम (16. 11. 2017) 
_____________________

12 टिप्‍पणियां:

PRAN SHARMA ने कहा…

Asha Vaadhi Drishtikon . Waah !

सदा ने कहा…

आमीन !!
जिंदगी फिर से आएगी ....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शुक्रवार (17-11-2017) को
"मुस्कुराती हुई ज़िन्दगी" (चर्चा अंक 2790"

पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आशा का सन्देश लिए ... सजग रहने को प्रेरित करती रचना ...
भावपूर्ण ...

Pammi singh'tripti' ने कहा…

आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 22नवम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

वाह! यह यकीन जिंदगी को सकारात्मकता प्रदान करता है। वक्त की कठोरता में भी मुस्कुराने को जी चाहता। सुंदर रचना। बधाई एवं शुभकामनाएं।

शुभा ने कहा…

बहुत खूब!!शबनम जी ।

NITU THAKUR ने कहा…

रचना बहुत अच्छी है

Meena sharma ने कहा…

हाँ मुझे यक़ीन है
ज़िन्दगी फिर से जीयेगी।
यही यकीन जिंदगी को आसान कर देता है....

रेणु ने कहा…

आदरणीय शबनम जी --आशा और विश्वास से भरी रचना है ------- सस्नेह ----

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आमीन ...
जिंदगी और रौशनी का रिश्ता है और ये साँसों का गीत ही तो है ...

Unknown ने कहा…

bahut hi sundar rachna. Mein bahut badi fan hun apki.

kya aap meri rachnayen padhna pasand karenge?

anshugallery.blogspot.in