वक़्त (चोका)
*******
वक्त की गति
करती निर्धारित
मन की दशा
हो मन प्रफुल्लित
वक़्त भागता
सूर्य की किरणों-सा
मनमौजी-सा
पकड़ में न आता
मन में पीर
अगर बस जाए
बीतता नहीं
वक़्त थम-सा जाता
जैसे जमा हो
हिमालय पे हिम
कठोरता से
पिघलना न चाहे,
वक़्त सजाता
तोहफ़ों से ज़िन्दगी
निर्ममता से
कभी देता है सज़ा
बिना कुसूर
वक़्त है बलवान
उसकी मर्ज़ी
जिधर ले के चले
जाना ही होता
बिना किए सवाल
बिना दिए जवाब !
- जेन्नी शबनम (28. 1. 2019)
__________________________
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-01-2019) को "वक्त की गति" (चर्चा अंक-3232) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आवश्यक सूचना :
अक्षय गौरव त्रैमासिक ई-पत्रिका के प्रथम आगामी अंक ( जनवरी-मार्च 2019 ) हेतु हम सभी रचनाकारों से हिंदी साहित्य की सभी विधाओं में रचनाएँ आमंत्रित करते हैं। 15 फरवरी 2019 तक रचनाएँ हमें प्रेषित की जा सकती हैं। रचनाएँ नीचे दिए गये ई-मेल पर प्रेषित करें- editor.akshayagaurav@gmail.com
अधिक जानकारी हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जाएं !
https://www.akshayagaurav.com/p/e-patrika-january-march-2019.html
बहुत खूब...... बेहतरीन रचना आदरणीया
बेहतरीन रचना
सादर
एक टिप्पणी भेजें