बसन्त
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मेरा जीवन मेरा बंधु
फिर भी निभ नहीं पाता बंधुत्व
किसकी चाकरी करता नित दिन
छुट गया मेरा निजत्व
आस उल्लास दोनों बिछुड़े
हाय! जीवन का ये कैसा बसंत।
- जेन्नी शबनम (12. 2. 2019)
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2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (14-02-2019) को "प्रेमदिवस का खेल" (चर्चा अंक-3247) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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पाश्चात्य प्रणय दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कुछ पंक्तियों में आपने कितना कुछ लिख डाला। बसंत भी गमगीन है। शुभकामनाएं आदरणीय ।
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