सीता की पीर (10 हाइकु)
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1. 
राह अगोरे  
शबरी-सा ये मन,  
कब आओगे?  
2. 
अहल्या बनी  
कोई राम न आया  
पाषाण रही।  
3. 
चीर-हरण,  
द्रौपदी का वो कृष्ण  
आता न अब।  
4. 
शुचि द्रौपदी  
पाँच वरों में बँटी,  
किसका दोष?  
5. 
कर्ण का दान  
कवच व कुंडल,  
कुंती बेकल।  
6. 
सीता है स्तब्ध  
राम का तिरस्कार  
भूमि की गोद।  
7. 
सीता की पीर  
माँ धरा ने समेटी  
दो फाँक हुई।  
8. 
स्पंदित धरा  
फटा धरा का सीना  
समाई सीता।  
9. 
त्रिदेव शिशु,  
सती अनसूइया  
आखिर हारे।  
10. 
सती का कुंड  
अब भी प्रज्वलित,  
कोई न शिव।  
- जेन्नी शबनम (31. 5. 2020)
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13 टिप्पणियां:
वाह इसे केहते है कम शब्दों में बहुत कुछ केहने का हुनर
बहुत ही बढ़िया सृजन
सही है ,उत्कृष्ट रचनायें ,लाजवाब
वाह....अनकही बात जो सब कुछ कहती।
नमस्ते,
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 02 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
पौराणिक है
कही सुन्दर सी जो
एक कहानी
बहुत ही सुन्दर रचना
सुन्दर सृजन
बहुत से नए प्रश्न जो आज के कलियुग में खड़े हैं ... अच्छा है इस युग में जवाब मिल गए थे चाहे कुछ प्रश्न फिर भी खड़े रहे ... लाजवाब हाइकू हैं सभी
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-06-2020) को "ज़िन्दगी के पॉज बटन को प्ले में बदल दिया" (चर्चा अंक-3721) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया रचना
बहुत बढ़िया हाइकु !
बहुत सुंदर हाइकु
वाह !बेहतरीन हाइकु आदरणीय दी.
सादर
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