परी
*******
दुश्वारियों से जी घबराए
जाने क़यामत कब आ जाए
मेरे सारे राज़, तुम छुपा लो जग से
मेरा उजड़ा मन, बसा लो मन में।
पूछे कोई कि तेरे मन में है कौन
कहना कि एक थी परी, ग़ुलाम देश की रानी
अपने परों से उड़कर, जो मेरे सपने में आई
किसी से न कहना, उस परी की कहानी
जो एक रोज़ मिली तुमको, डरती हुई
खोकर आज़ादी तड़पती हुई।
लहू से लथपथ, जीवन से विरक्त
किसी ने छला था, बड़ा उसका मन
पंख थे दोनों उसके कतरे हुए
आँखें थीं बंद, पर आँसू लुढ़कते रहे
होठों पे चुप्पी और सिसकी थमती नहीं
उफ़! बदहवास, बड़ी थी बदहाल
उसके मन में थे ढेरों मलाल
कह गई मुझसे वो अपना हाल
जीवन बीता था बनकर सवाल
ले लिया वादा कि लेना न नाम।
परी थी वो, मगर थी ग़ुलाम
अपनों ने छीने थे सारे अरमान
साँसों पर बंदिश, सपनों पर पहरे
ऐसे में भला, कोई कैसे जीए?
ज़ख़्मी तन और घायल मन
फ़ना हो गई, हर राज़ कहकर
रह गई मेरे मन में कहानी बनकर
सच उसका, मुझे कहना नहीं
वो दे गई, ये कैसी मज़बूरी।
हाँ! सच है, वो परी न थी
न किसी के सपनों की रानी
वह थी थकी-हारी, टूटी एक नारी
जो सदा रही सबके लिए बेमानी
नहीं है कोई अब उसकी निशानी।
ओह! उसने कहा था राज़ न खोलना
उसकी इज़्ज़त अपने तक रखना,
ना-ना वो थी परी,ग़ुलाम देश की रानी
अपने परों से उड़कर, जो मेरे सपने में आई।
- जेन्नी शबनम (3. 9. 2020)
____________________
8 टिप्पणियां:
उपयोगी और सार्थक रचना।
वाह
सुन्दर सृजन
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-09-2020) को "शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3815) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
बेहतरीन रचना आदरणीया
बहुत बढ़िया
वह थी थकी-हारी, टूटी एक नारी
जो सदा रही सबके लिए बेमानी
नहीं है कोई अब उसकी निशानी।
बेबस नारी की व्यथा और दर्द का बेहतरीन शब्दचित्र उकेरा है आपने...।
सुन्दर सार्थक सृजन।
बहुत सुंदर रचना ।
एक टिप्पणी भेजें