शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

182. नहीं होता अभिनन्दन (क्षणिका)/ nahin hota abhinandan (kshanikaa)

नहीं होता अभिनन्दन

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सहज जीवन मन का बंधन
पार होने की चाह निराशा और क्रंदन
अनवरत प्रयास विफलता और रुदन
असह्य प्रतिफल नहीं होता अभिनन्दन

- जेन्नी शबनम (15. 10. 2010)
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nahin hota abhinandan

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sahaj jivan mann ka bandhan
paar hone kee chaah niraasha aur krandan
anwarat prayaas vifalta aur rudan
asahya pratifal nahin hota abhinandan.

- Jenny Shabnam (15. 10. 2010)
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2 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुंदर काव्य रचना...सुंदर प्रस्तुति!
आपने बहुत ही उम्दा रचना लिखी है!

सहज साहित्य ने कहा…

सहज जीवन
मन का बंधन,
पार होने की चाह
निराशा और क्रंदन,
अनवरत प्रयास
विफलता और रुदन,
असह्य प्रतिफल
नहीं होता अभिनन्दन !
शबनम जी प्रत्येक पंक्ति में जीवन की विवशता समाई हुई है । आप्ने कम से कम शब्दों में सहज जीवन में आने वाली बाधाओं को रेखांकित कर दिया है । सच है -छली और कपटी बड़े आराम से रहते हैं , सहज जीवन जीनेवाला उपेक्षा और पीड़ा भोगता है ।