सपने
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उम्मीद के सपने बार-बार आते हैं
न चाहें फिर भी आस जगाते हैं।
चाह वही अभिलाषा भी वही
सपने हर बार बिखर जाते हैं।
उल्लसित होता है मन हर सुबह
साँझ ढले टूटे सपने डराते हैं।
आओ देखें कुछ ऐसे सपने
जागती आँखों को जो सुहाते हैं।
'शब' कैसे रोके रोज़ आने से
सपने आँखों को बहुत भाते हैं।
- जेन्नी शबनम (8. 4. 2011)
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उम्मीद के सपने बार-बार आते हैं
न चाहें फिर भी आस जगाते हैं।
चाह वही अभिलाषा भी वही
सपने हर बार बिखर जाते हैं।
उल्लसित होता है मन हर सुबह
साँझ ढले टूटे सपने डराते हैं।
आओ देखें कुछ ऐसे सपने
जागती आँखों को जो सुहाते हैं।
'शब' कैसे रोके रोज़ आने से
सपने आँखों को बहुत भाते हैं।
- जेन्नी शबनम (8. 4. 2011)
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8 टिप्पणियां:
अच्छे शब्द , बेहद भावपूर्ण रचना बधाई
sapne zindagi ko raas bahut aate hain
उल्लसित होता है मन हर सुबह
सांझ ढले टूटे सपने डराते हैं!
आओ देखें कुछ ऐसे सपने
जागती आँखों को जो सुहाते हैं!
''शब'' कैसे रोके रोज़ आने से
सपने आँखों को बहुत भाते हैं! बहुत खूब ! जागती आंखों को सुहाने वाले सपने जीवन-रस से भरे होते हैं; इसीलिए उनका उल्लास हमें बाँधे रहता है । सपने किसी सीमा रेखा को नहीं मानते । जहाँ एक सपना सम्पन्न (ख़त्म नही) होता है , वहीं से दूसरा शुरू हो जाता है । पूरी कविता में एक करिश्मा है जो किसी भी सहृदय पाठक को रससिक्त करने और सोचने पर बाध्य कर देता है। जेन्नी शबनम जी इस प्यारी रचना के लिए मेरी हार्दिक बधाई!
स्वप्न ही सही कुछ पल तो सुकून मिले ..अच्छी प्रस्तुति
भावपूर्ण रचना...
सपनों के सहारे दिंदगी भी जीने की कोशिश करती है।सपनों का जीवन में बहुत ही महत्व है।
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
सपने देखने ही चाहिए, तभी तो वे पूरे होंगे।
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