अधरों की बातें
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तुम्हारे अधरों की बातें
तुम क्या जानो
मेरे अधरों को बहुत भाते हैं
न समझे तुम मन की बातें
कैसे कहें तुमको
तुम्हें देख हम खिल जाते हैं
तुम भी देख लो मेरे सनम
प्रीत की रीत
यूँ ही नहीं निभाते हैं
शाख पे बैठी कोई चिरैया
गीत प्यार का जब गाती है
सुनकर गीत मधुर
साथी उसके उड़ आते हैं
ऐसे तुम भी आ जाओ
मेरे अधरों पे गीत रच जाओ
अब तुम बिन हम रह नहीं पाते हैं
जाने कब आएँगे वो दिन
जादू-सी रातें बीते हुए दिन
वो दिन बड़ा सताते हैं
हर पल तुमको बुलाते हैं
अब हम रह नहीं पाते हैं।
- जेन्नी शबनम (18. 5. 2011)
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तुम्हारे अधरों की बातें
तुम क्या जानो
मेरे अधरों को बहुत भाते हैं
न समझे तुम मन की बातें
कैसे कहें तुमको
तुम्हें देख हम खिल जाते हैं
तुम भी देख लो मेरे सनम
प्रीत की रीत
यूँ ही नहीं निभाते हैं
शाख पे बैठी कोई चिरैया
गीत प्यार का जब गाती है
सुनकर गीत मधुर
साथी उसके उड़ आते हैं
ऐसे तुम भी आ जाओ
मेरे अधरों पे गीत रच जाओ
अब तुम बिन हम रह नहीं पाते हैं
जाने कब आएँगे वो दिन
जादू-सी रातें बीते हुए दिन
वो दिन बड़ा सताते हैं
हर पल तुमको बुलाते हैं
अब हम रह नहीं पाते हैं।
- जेन्नी शबनम (18. 5. 2011)
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18 टिप्पणियां:
बेहतरीन कविता, हृदयस्पर्शी बधाई
शाख पे बैठी कोई चिरैया
गीत प्यार का जब गाती
सुन गीत मधुर
साथी उसके उड़ आते हैं,
ऐसे तुम भी आ जाओ
मेरे अधरों पे गीत रच जाओ... neh nimantran pyaara sa hai
कोमल एहसासों को व्यक्त किया है ..सुन्दर रचना
मन के मधुर भावों की भावुक अभिव्यक्ति।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति . दिल की गहराइयों से ओमदे(umde) जज्बात हैं शायद. अति प्रभावी !
khoobsoorat shabd aur unke anuroop
khoobsoorat bhaav . Achchhee lagee
hai kavita .Badhaaee .
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (21.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
Mam bahut hi khubsurat rachna likhi hai aapne. . Pyari kavita. .
Jai hind jai bharat
बहुत सुन्दर और मखमली सी भावप्रणव रचना!
अधरों की बातें कविता की ये पंक्तियाँ माधुर्य गुण से ओतप्रोत हैं-शाख पे बैठी कोई चिरैया
गीत प्यार का जब गाती
सुन गीत मधुर
साथी उसके उड़ आते हैं,
ऐसे तुम भी आ जाओ
मेरे अधरों पे गीत रच जाओ
अब तुम बिन हम रह नहीं पाते हैं, 'चिरैया' शब्द का प्रयोग अतिरिक्त माधुर्य से सिक्त है । जेन्नी शबनम जी की भाषा के प्रति यह सजगता उनकी कविता में और चार चाँद लगा देती है ।
ये अधीर सा करते अधर.
बहुत खूब...
sunder rachna...
जी मैं पहली बार आज आपके ब्लाग पर हूं। सच में बहुत अच्छी लगी आपकी कविता। शुरू से ही विषय की पटरी पर आ गई और आखिर तक उस पर बनी रही। बहुत सुंदर
तुम क्या जानो
मेरे अधरों को बहुत भाते हैं,
न समझे तुम मन की बातें
कैसे कहें तुमको
वाह... बहुत खूब... बहुत ही गहराई लिए हुए रचना है!
sundar rachna,badhaee ke sath meri subhkana,
बेरख्त जरे लम्हे ,कहते हो भूलाने को
असरार जले दिल पे , नासूर हज़ारो है ,..............रवि विद्रोही
Bahut sunder
Shubhkamnayen
बहुत प्यारा सा लिखा है
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