सोमवार, 2 अप्रैल 2012

337. तुम्हारा तिलिस्म

तुम्हारा तिलिस्म

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धुँध छट गई है
मौसम में फगुनाहट घुल गई है

आँखों में सपने मचल रहे हैं
रगों में हलकी तपिश महसूस हो रही है
जाने क्या हुआ है
पर कुछ तो हुआ है
जब भी थामा तुमने मैं मदहोश हो गई
नहीं मालूम कब
तुम्हारे आलिंगन की चाह ने
मुझमें जन्म लिया
और अब ख़यालों को
सूरत में बदलते देख रही हूँ
शब्द सदा की तरह अब भी मौन हैं
नहीं मालूम अनकहा तुम समझ पाते हो या नहीं
जाने तुमने मेरे मन को जाना या नहीं
या मैं सिर्फ़ बदन बन पाई तुम्हारे लिए
क्या जाने वक़्त की जादूगरी है
या तुम्हारा तिलिस्म
स्वीकार है मुझे
चाहे जिस रूप में तुम चाहो मुझे। 

- जेन्नी शबनम (1. 4. 2012)
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21 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

यही तो दीवानगी है प्यार की.........

है तो है.....एकतरफा ही सही..........

बहुत सुन्दर जेन्नी जी

अनु

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

मैं सिर्फ बदन बन पाई तुम्हारे लिए
क्या जाने वक़्त की जादूगरी है
या तुम्हारा तिलिस्म,
स्वीकार है मुझे
चाहे जिस रूप मेंतुम चाहो मुझे !
बहुत बढ़िया रचना,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....

MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...

Dasarath Singh ने कहा…

धुँध छट गई है
मौसम में फगुनाहट घुल गई है
आँखों में सपने मचल रहे हैं
रगों में हलकी तपिश
महसूस हो रही है,

प्रभावशाली प्रस्तुति ।
अच्छा लगा हमे!

Dasarath Singh ने कहा…

प्रभावशाली प्रस्तुति ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

समर्पण की पराकाष्ठा .... सुंदर रचना

रश्मि प्रभा... ने कहा…

नहीं मालूम
अनकहा तुम समझ पाते हो या नहीं
जाने तुमने मेरे मन को जाना या नहीं
या मैं सिर्फ बदन बन पाई तुम्हारे लिए
क्या जाने वक़्त की जादूगरी है
या तुम्हारा तिलिस्म,
स्वीकार है मुझे
चाहे जिस रूप में
तुम चाहो मुझे !
....... समर्पित मन को सब स्वीकार होता है

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

खुबसूरत एहसास...
सादर.

रचना दीक्षित ने कहा…

अनकहा तुम समझ पाते हो या नहीं
जाने तुमने मेरे मन को जाना या नहीं
या मैं सिर्फ बदन बन पाई तुम्हारे लिए
क्या जाने वक़्त की जादूगरी है
या तुम्हारा तिलिस्म,

ऐसी दीवानगी तो मोहब्बत करने वाला ही समझ सकता है. बहुत खूब.

***Punam*** ने कहा…

अनकहा तुम समझ पाते हो या नहीं
जाने तुमने मेरे मन को जाना या नहीं
या मैं सिर्फ बदन बन पाई तुम्हारे लिए
क्या जाने वक़्त की जादूगरी है

बहुत सुन्दर रचना...

Rakesh Kumar ने कहा…

गजब के भाव प्रस्तुत किये हैं आपने जेन्नी जी.
सुन्दर भाव विभोर करती प्रस्तुति के लिए
आभार जी.

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत ही सुन्दर एवं सारगर्भित रचना । मेरे नए पोस्ट "अमृत लाल नागर" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

Dinesh pareek ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/02/blog-post_25.html
http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/03/blog-post_12.html

Nidhi ने कहा…

स्वीकार है मुझे
चाहे जिस रूप में
तुम चाहो मुझे !...यही प्यार है.

dinesh aggarwal ने कहा…

सुन्दर भावों को अभिव्यक्त करती रचना।

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत ही सुंदर प्रस्तुति

आपका

सवाई सिंह{आगरा }

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

क्या जाने वक़्त की जादूगरी है
या तुम्हारा तिलिस्म,
स्वीकार है मुझे
चाहे जिस रूप में
तुम चाहो मुझे !

sundar panktiyan.

मेरा साहित्य ने कहा…

मैं सिर्फ बदन बन पाई तुम्हारे लिए
क्या जाने वक़्त की जादूगरी है
या तुम्हारा तिलिस्म,
स्वीकार है मुझे
चाहे जिस रूप मेंतुम चाहो मुझे !
samarpan ki sunder abhivayakti
rachana

सहज साहित्य ने कहा…

अनकहा तुम समझ पाते हो या नहीं
जाने तुमने मेरे मन को जाना या नहीं
या मैं सिर्फ बदन बन पाई तुम्हारे लिए
क्या जाने वक़्त की जादूगरी है
या तुम्हारा तिलिस्म,
स्वीकार है मुझे
चाहे जिस रूप में
तुम चाहो मुझे !- आपकी इस कविता में बहुत गहरे प्रेम और चाह्त की व्याकुलता और समर्पण दोनों मिल गए हैं । पूरी कविता आद्यन्त एक सूत्र में मार्मिकता से पिरोई गई है ।

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब...
शुभकामनायें आपको !

Monika Jain ने कहा…

sundar rachna

rana ने कहा…

crative.