बुधवार, 18 अप्रैल 2012

341. अंतिम परिणति

अंतिम परिणति

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बाबू! तुम दूर जो गए
सपनों से भी रूठ गए
कर जोड़ गुहार मेरी
तनिक न ली सुध मेरी
लोर बहते नहीं अकारण
जानते हो तुम भी कारण
हर घड़ी है अंतिम पल
जाने कब रुके समय-क्रम।  

बाबू! तुम क्यों नही समझते
पीर मेरी जो मन दुखाते
तुम्हारे जाने यही उचित
पर मेरा मन करता भ्रमित
एक बार तुम आ जाना
सपने मेरे तुम ले आना
तुम्हारी प्रीत मन में बसी
भले जाओ तुम रहो कहीं। 

बाबू! देखो जीवन मेरा
छवि मेरी छाया तुम्हारा
संग-संग भले हैं दिखते
छाया को भला कैसे छूते
दर्पण देख ये भान होता
नहीं विशेष जो तुम्हें खींचता
बिछोह-रुदन बन गई नियति
प्रेम-कथा की अंतिम परिणति!

- जेन्नी शबनम (16. 4. 2012)
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22 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

बिछोह-रुदन बन गई नियति
प्रेम-कथा की अंतिम परिणति !

गहन प्रेम की पीड़ा ...एक टीस दे रही है ....!!
बहुत सुंदर रचना ....
शुभकामनायें ....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

रुदन बन गई नियति
प्रेम-कथा की अंतिम परिणति !

बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...

MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह...............
प्रेमपगी अभिव्यक्ति.....
बहुत सुंदर...

आशा बिष्ट ने कहा…

बिछोह-रुदन बन गई नियति
प्रेम-कथा की अंतिम परिणति ..kavita ka sundar smapan

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

गहरे उतरते भाव...... बहुत सुंदर

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बाबू तुम दूर जो गए
सपनों से भी रूठ गए
कर जोड़ गुहार मेरी
तनिक न ली सुध मेरी
लोर बहते नहीं अकारण
जानते हो तुम भी कारण
हर घड़ी है अंतिम पल
जाने कब रुके समय-चक्र

बाबू तुम क्यों नही समझते
पीर मेरी जो मन दुखाते
तुम्हारे जाने यही उचित
पर मेरा मन करता भ्रमित
एक बार तुम आ जाना
सपने मेरे तुम ले आना
तुम्हारी प्रीत मन में बसी
भले जाओ तुम रहो कहीं
डॉ० जेन्नी शबनम जी बहुत ही उम्दा कविता बधाई

रविकर ने कहा…

जोरदार ।

बढ़िया प्रस्तुति ।

बधाई ।।

vikram7 ने कहा…

बाबू देखो जीवन मेरा
छवि मेरी छाया तुम्हारा
संग-संग भले हैं दीखते
छाया को भला कैसे छूते
दर्पण देख ये भान होता
नहीं विशेष जो तुम्हें खींचता
बिछोह-रुदन बन गई नियति
प्रेम-कथा की अंतिम परिणति !
बेहतरीन भाव लिए अति सुन्दर रचना

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना,...

MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही मर्म स्पर्शी।

सादर

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 20/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

vandana gupta ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना।

mridula pradhan ने कहा…

sunder.....bhawpoorn.

वाणी गीत ने कहा…

बिछोह-रुदन बन गई नियति
प्रेम-कथा की अंतिम परिणति !
मार्मिक !

संजय भास्‍कर ने कहा…

गहन पीड़ा .....दर्द की स्याही से लिखी आपकी कविता कई प्रश्न उठाती है...

Nidhi ने कहा…

प्रेम में डूबी रचना

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

विरह का सजीव चित्रण ...

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

विरह का सजीव चित्रण ...

Poonam Agrawal ने कहा…

Sunder abhivyakti ... sunder bhav k liye aapko dhero badhai ...

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

बाबू तुम क्यों नही समझते
पीर मेरी जो मन दुखाते very nice.....

Madhuresh ने कहा…

बिछोह-रुदन बन गई नियति
प्रेम-कथा की अंतिम परिणति !!

sundar abhivyakti!