मेरा अपना कुछ
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मेरा अपना एक टुकड़ा सूरज-चाँद है
एक कतरा धरती-आसमान है
कुछ छींटे सुर्ख़ उजाले, कुछ स्याह अँधियारे हैं
कुछ ख़ुशी के नग़्मे, कुछ दास्ताँ ग़मगीन हैं
थोड़े नासमझी के हश्र, थोड़े काबिलियत के फ़ख्र हैं।
मुझे अपनी कहानी लिखनी है
इन 'कुछ' और 'थोड़े' जो मेरे पास हैं,
मुझे अपनी ज़िन्दगी जीनी है
ये 'अपने' जो मेरे साथ हैं।
- जेन्नी शबनम (फ़रवरी 20, 2009)
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मेरा अपना एक टुकड़ा सूरज-चाँद है
एक कतरा धरती-आसमान है
कुछ छींटे सुर्ख़ उजाले, कुछ स्याह अँधियारे हैं
कुछ ख़ुशी के नग़्मे, कुछ दास्ताँ ग़मगीन हैं
थोड़े नासमझी के हश्र, थोड़े काबिलियत के फ़ख्र हैं।
मुझे अपनी कहानी लिखनी है
इन 'कुछ' और 'थोड़े' जो मेरे पास हैं,
मुझे अपनी ज़िन्दगी जीनी है
ये 'अपने' जो मेरे साथ हैं।
- जेन्नी शबनम (फ़रवरी 20, 2009)
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