विध्वंस होने को आतुर
***
चेतन अशांत है
अचेतन में कोहराम है
अवचेतन में धधक रहा
जैसे कोई ताप है।
अकारण नहीं संताप
मिटना तो निश्चित है
नष्ट हो जाना ही
जैसे अन्तिम परिणाम है।
विक्षिप्तता की स्थिति
क्रूरता का चरमोत्कर्ष है
विध्वंस होने को आतुर
जैसे अब हर इन्सान है।
विभीषिका बढ़ती जा रही
स्वयं मिटे, अब दूसरों की बारी है
चल रहा कोई महायुद्ध
जैसे सदियों से अविराम है।
- जेन्नी शबनम (28.3.2011)
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चेतन अशांत है
अचेतन में कोहराम है
अवचेतन में धधक रहा
जैसे कोई ताप है।
अकारण नहीं संताप
मिटना तो निश्चित है
नष्ट हो जाना ही
जैसे अन्तिम परिणाम है।
विक्षिप्तता की स्थिति
क्रूरता का चरमोत्कर्ष है
विध्वंस होने को आतुर
जैसे अब हर इन्सान है।
विभीषिका बढ़ती जा रही
स्वयं मिटे, अब दूसरों की बारी है
चल रहा कोई महायुद्ध
जैसे सदियों से अविराम है।
- जेन्नी शबनम (28.3.2011)
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10 टिप्पणियां:
सही कह रही हैं…………बेहद सुन्दर रचना।
आपकी रचना के तीनों छन्द सार्थर और सशक्त हैं!
विक्षिप्तता की स्थिति
क्रूरता का चरमोत्कर्ष है,
विध्वंस होने को आतुर
जैसे अब हर इंसान है !
sach kaha ...
विक्षिप्तता की स्थिति
क्रूरता का चरमोत्कर्ष है,
सुन्दर रचना
पूरा विश्व आज आपाधापी में उलझा हुआ है , अशान्त है । सहिष्णुता हार चुकी है । यही कारण है कि आदमी को कुछ नहीं सूझ रहा है ।अधिकतम की शक्ति पूरी तरह विनाश में लगी हुई है । बहुत सटीक और प्रभावी चित्रण है ।
बार बार लगता है जैसे घड़ा भर गया ... बस फूटने ही वाला है ...
सुन्दर रचना !
bahot sundar.
सुन्दर अभिव्यक्ति !
यथार्थ !
आज तो आपके ब्लोग पर भ्रमण भर किया है- फ़िर आऊंगा !
आपके ब्लोग पर आना अच्छा लगा !
सुन्दर ब्लोग और अच्छी रचनाएं !
जय हो !
बेहद सुन्दर रचना।
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें !
माँ दुर्गा आपकी सभी मंगल कामनाएं पूर्ण करें
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