बुधवार, 21 सितंबर 2011

285. मैं तेरी सूरजमुखी

मैं तेरी सूरजमुखी

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ओ मेरे सूरज
मैं तेरी सूरजमुखी (सूर्यमुखी)
बाट जोहते-जोहते मुर्झाने लगी
कई दिनों से तू आया नहीं
जाने कौन-सी राह पकड़ ली तूने
कौन ले गया तुझे?
क्या ये भी बिसर गया
कि सारा दिन तुझे ही तो निहारती हूँ
जीवन ऐसे ही तेरे संग बिताती हूँ
तुम चाहो न चाहो
तेरे बिना रह नहीं सकती
चाहूँ फिर भी तुम बिन खिल नहीं सकती
जानती हूँ तुम्हारा साथ बस दिन भर का है
फिर तू अपनी राह मैं अपनी राह
अगली सुबह फिर तेरी राह
लड़ लिया करो न, बादलों से मेरे लिए
ओ मेरे सूरज
मैं तेरी सूरजमुखी!  

- जेन्नी शबनम (17. 9. 2011)
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11 टिप्‍पणियां:

vidhya ने कहा…

बहुत ही बढ़िया

रविकर ने कहा…

अगर आपकी उत्तम रचना, चर्चा में आ जाए |

शुक्रवार का मंच जीत ले, मानस पर छा जाए ||


तब भी क्या आनन्द बांटने, इधर नहीं आना है ?

छोटी ख़ुशी मनाने आ, जो शीघ्र बड़ी पाना है ||

चर्चा-मंच : 646

http://charchamanch.blogspot.com/

विभूति" ने कहा…

बहुत ही सुन्दर....

सहज साहित्य ने कहा…

प्रेम की सादगी ही उसकी गुरुता और गम्भीरता है । सचमुच बाद्लों से लड़ाई हो ही जाए यदी सूरज चाहे तो !नवल कल्पना और न अभिव्यंजना का मणि-कांचन प्रयोग है आपकी यह कविता ।

Rajesh Kumari ने कहा…

pyaari si kavita.surajmukhi aur sooraj jiske bina vah rah nahi sakti.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Samvedansheel rachna ... bahut achee lagi ...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

कोमल प्रेम भावों की सुन्दर रचना

Unknown ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना |

मेरे ब्लॉग में भी आयें-

**मेरी कविता**

रेखा ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत ...

virendra sharma ने कहा…

बेहतरीन कविता .लड़ तू मेरे लिए बादलों से लड़झगड़ .

Udan Tashtari ने कहा…

उम्दा रचना....