मैं तेरी सूरजमुखी
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ओ मेरे सूरज
मैं तेरी सूरजमुखी (सूर्यमुखी)
बाट जोहते-जोहते मुर्झाने लगी
कई दिनों से तू आया नहीं
जाने कौन-सी राह पकड़ ली तूने
कौन ले गया तुझे?
क्या ये भी बिसर गया
कि सारा दिन तुझे ही तो निहारती हूँ
जीवन ऐसे ही तेरे संग बिताती हूँ
तुम चाहो न चाहो
तेरे बिना रह नहीं सकती
चाहूँ फिर भी तुम बिन खिल नहीं सकती
जानती हूँ तुम्हारा साथ बस दिन भर का है
फिर तू अपनी राह मैं अपनी राह
अगली सुबह फिर तेरी राह
लड़ लिया करो न, बादलों से मेरे लिए
ओ मेरे सूरज
मैं तेरी सूरजमुखी!
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ओ मेरे सूरज
मैं तेरी सूरजमुखी (सूर्यमुखी)
बाट जोहते-जोहते मुर्झाने लगी
कई दिनों से तू आया नहीं
जाने कौन-सी राह पकड़ ली तूने
कौन ले गया तुझे?
क्या ये भी बिसर गया
कि सारा दिन तुझे ही तो निहारती हूँ
जीवन ऐसे ही तेरे संग बिताती हूँ
तुम चाहो न चाहो
तेरे बिना रह नहीं सकती
चाहूँ फिर भी तुम बिन खिल नहीं सकती
जानती हूँ तुम्हारा साथ बस दिन भर का है
फिर तू अपनी राह मैं अपनी राह
अगली सुबह फिर तेरी राह
लड़ लिया करो न, बादलों से मेरे लिए
ओ मेरे सूरज
मैं तेरी सूरजमुखी!
- जेन्नी शबनम (17. 9. 2011)
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11 टिप्पणियां:
बहुत ही बढ़िया
अगर आपकी उत्तम रचना, चर्चा में आ जाए |
शुक्रवार का मंच जीत ले, मानस पर छा जाए ||
तब भी क्या आनन्द बांटने, इधर नहीं आना है ?
छोटी ख़ुशी मनाने आ, जो शीघ्र बड़ी पाना है ||
चर्चा-मंच : 646
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत ही सुन्दर....
प्रेम की सादगी ही उसकी गुरुता और गम्भीरता है । सचमुच बाद्लों से लड़ाई हो ही जाए यदी सूरज चाहे तो !नवल कल्पना और न अभिव्यंजना का मणि-कांचन प्रयोग है आपकी यह कविता ।
pyaari si kavita.surajmukhi aur sooraj jiske bina vah rah nahi sakti.
Samvedansheel rachna ... bahut achee lagi ...
कोमल प्रेम भावों की सुन्दर रचना
बहुत बढ़िया रचना |
मेरे ब्लॉग में भी आयें-
**मेरी कविता**
बहुत ही खुबसूरत ...
बेहतरीन कविता .लड़ तू मेरे लिए बादलों से लड़झगड़ .
उम्दा रचना....
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